● दुष्यंत कुमार की जयंती पर विशेष

मुंबई। हिंदी ग़ज़ल को जनमानस की आवाज़ देने वाले कवि दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ था। उन्हें हिंदी ग़ज़ल का पर्याय माना जाता है। दुष्यंत ने ग़ज़ल को महफ़िलों की सीमाओं से निकालकर सीधे आम आदमी की ज़िंदगी और संघर्ष से जोड़ दिया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई के दौरान ही उनका रुझान साहित्य और रंगमंच की ओर गहरा हुआ। उनका पहला कविता संग्रह “’सूर्य कहीं भी जलता है’ प्रकाशित हुआ पर वास्तविक पहचान उन्हें ग़ज़ल संग्रह ‘साये में धूप’ से मिली। यह संग्रह हिंदी ग़ज़ल के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है।
दुष्यंत कुमार का अंदाज़ बेहद सीधा और जनभाषा के करीब था। वे मंच पर जब ग़ज़ल सुनाते, तो श्रोताओं को लगता मानो उनकी ही पीड़ा शब्दों में ढल गई हो। उनके कुछ कालजयी शेर आज भी आंदोलनों और सभाओं में गूँजते हैं-
- ‘कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।’ - सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। - हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
दुष्यंत कुमार ने साहित्य को जनांदोलन की भाषा दी। मात्र 42 वर्ष की उम्र में 30 दिसम्बर 1975 को उनका निधन हो गया किंतु उनका रचना संसार आज भी जीवित है और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा देता है।
जयंती पर उन्हें नमन!
बहुत सुंदर
भावपूर्ण श्रद्धांजलि