
मुंबई।
डॉ राही मासूम रज़ा के चर्चित उपन्यास टोपी शुक्ला पर आधारित ‘टोपी की दास्तान’ की प्रस्तुति केशव गोरे ट्रस्ट, गोरेगांव के मृणालताई हाल में रविवार 31 अगस्त 2025 को चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से आयोजित हुई। कार्यक्रम में विंग्स कल्चरल सोसाइटी के कलाकारों तारिक़ हमीद, राजगुरु मोहन एवं रोचना विद्या की भावभंगिमा, अभिनय और अंदाज़े बयां ने इस दास्तानगोई को अविस्मरणीय बना दिया। उपन्यास में वर्णित समय और समाज, धार्मिक कट्टरता और मानसिक संकीर्णता को संप्रेषित करने में इन कलाकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दास्तानगोई ने साबित किया कि इस कायनात में इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।

मुम्बई में गणपति उत्सव के बावजूद इस दास्तानगोई का लुत्फ़ उठाने के लिए दर्शक अच्छी तादाद में पधारे थे। ‘टोपी की दास्तान’ के कुछ चुटकुले प्रसंगों ने जहां लोगों को हँसाया गुदगुदाया वहीं टोपी की मौत ने सबको हिला दिया। कई दर्शकों की आंखें नम हो गईं। टोपी की दास्तान की यह प्रस्तुति इतनी शानदार और जानदार थी कि दर्शकों ने कलाकारों की जमकर तारीफ़ की। दर्शकों की राय में आज देश और समाज में जैसे हालात हैं उसमें ऐसी दास्तानगोई की बेहद ज़रूरत है।

प्रस्तुति के बाद टोपी की दास्तान पर खुली चर्चा हुई। दिल्ली से पधारे प्रतिष्ठित कथाकार संदीप तोमर ने इस दास्तानगोई के कलाकारों की तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्होंने समय के साथ बदलते हुए चरित्रों को जिस ख़ूबी के साथ जीवंत किया वह बेमिसाल है। कलाकारों ने कहानी की आत्मा को ज़िंदा रखा। साहित्य का असली काम है सवाल उठाना और टोपी की दास्तान भी यही काम करती है।

दिल्ली की लोकप्रिय पत्रिका ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादक प्रेम जनमेजय के अनुसार लोगों की सोच में उस समय इतनी संकीर्णता नहीं थी जितनी आज है। टोपी शुक्ला की यह दास्तान एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठाती है कि दंगों में आदमी मरता है या आदमीयत। एक रोचक रचना के अंश पाठ के ज़रिए व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने डॉ राही मासूम रज़ा की व्यंग्य दृष्टि को भी रेखांकित किया।
इस चर्चा को आगे बढ़ाने में सुभाष काबरा, हरि मृदुल, अलका अग्रवाल, रीता दास राम, विद्या नाईक, नाज़नीन बर्दे, राजेश जाधव, सुनील कदम, सुबोध मोरे और सुधाकर पांडेय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चर्चा सत्र का संचालन चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के संयोजक देवमणि पांडेय ने किया। अंत में आभार रंगकर्मी रोचना विद्या ने व्यक्त किया।