
नई दिल्ली।
समुद्र तल से नीचे बसा नीदरलैंड्स अपने बाढ़ बचाव उपायों के कारण पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां विकसित की गई स्मार्ट डाइक और इन्फ्लेटेबल फ्लड बैरियर अब वैश्विक चर्चा का विषय हैं। इनकी खासियत यह है कि ये दीवारें ज़रूरत पड़ते ही अपने आप जमीन से उठकर बाढ़ के पानी को रोक देती हैं और खतरा टलते ही वापस जमीन में समा जाती हैं।
नीदरलैंड्स के उदाहरण
स्पाकेनबर्ग (Spakenburg) में 300 मीटर लंबा सेल्फ-क्लोज़िंग बैरियर है, जो पानी बढ़ने पर खुद-ब-खुद उठकर 80 सेंटीमीटर ऊँचा अवरोध बन जाता है।
रैम्सपोल (Ramspol) में रबर ब्लैडर डैम है, जो हवा और पानी से भरकर लगभग 10 मीटर ऊँचाई तक उठ जाता है।
स्टाइल (Steyl) का फ्लैप बैरियर 3 मीटर ऊँचाई तक ऊपर झुककर बाढ़ रोकता है और फिर वापस समा जाता है।
स्थानीय लोग इन्हें ‘जमीन से निकलने वाली अदृश्य दीवारें’ कहते हैं।

भारत के लिए सबक
भारत हर साल बाढ़ की मार झेलता है।ब्रह्मपुत्र और गंगा के मैदानों में हजारों गाँव डूब जाते हैं। बिहार और असम के लोग हर मानसून में घर-बार छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। मुंबई जैसे महानगरों में थोड़ी सी बारिश भी जनजीवन को ठप कर देती है। ऐसे में नीदरलैंड्स की यह तकनीक भारत के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्ट बैरियर गंगा और यमुना के तटबंधों पर या मुंबई जैसे शहरों में तटीय क्षेत्रों पर लगाया जाए तो बाढ़ का खतरा काफी हद तक टाला जा सकता है।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ. पीटर यान का कहना है, ‘भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश में हर जगह पारंपरिक बांध बनाना संभव नहीं। लेकिन नीदरलैंड्स की तरह स्मार्ट डाइक स्थानीय स्तर पर समाधान दे सकती है।’
भारतीय जलविज्ञानी मानते हैं कि मुंबई के वर्सोवा, दादर और कुलाबा जैसे इलाकों में अगर ऐसी फ्लड बैरियर तकनीक अपनाई जाए तो शहर का जलजमाव संकट काफी कम हो सकता है।