● 14 गांठों वाला सूत्र 14 लोकों, 14 रत्नों और 14 मन्वंतर का प्रतीक
● अनंत सूत्र में बंधा जीवन, बाप्पा की विदाई में गूंजता प्रेम

■ पंडित धीरज मिश्र
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के ‘अनंत’ स्वरूप की आराधना के लिए विशेष माना गया है। ‘अनंत’ का अर्थ है – जिसका कोई अंत न हो। इसी अनंत स्वरूप का स्मरण कर भक्त अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
अनंत चतुर्दशी और व्रत कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार इस व्रत को धारण करने से व्यक्ति के जीवन से संकट दूर होते हैं और उसे अखंड पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस व्रत का आरंभ स्वयं भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए किया था। भक्तजन इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष शुद्ध भाव से पूजा-अर्चना करते हैं और अनंत सूत्र (लाल-पीला धागा) को दाहिने हाथ में बांधते हैं।
अनंत सूत्र का महत्व
अनंत सूत्र को धारण करना इस व्रत की विशेष परंपरा है। यह धागा 14 गांठों वाला होता है जो जीवन के 14 लोकों, 14 रत्नों और 14 मन्वंतर का प्रतीक माना जाता है। इसे बांधने से जीवन में स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि आती है।
अनंत चतुर्दशी और गणपति विसर्जन
महाराष्ट्र सहित भारत के कई हिस्सों में अनंत चतुर्दशी का दिन गणेश उत्सव की समाप्ति का दिन भी होता है। गणेश चतुर्थी पर स्थापित की गई गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इसी दिन बड़े धूमधाम और शोभायात्राओं के साथ किया जाता है। इसलिए यह दिन भक्ति, श्रद्धा और लोकआस्था का अद्भुत संगम बन जाता है।
बाप्पा होते हैं विदा
सांस्कृतिक और सामाजिक स्वरूप
इस दिन मंदिरों और घरों में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन तथा सामूहिक आयोजन होते हैं। विशेषकर महाराष्ट्र में गणपति बप्पा के विसर्जन के साथ ‘गणपति बप्पा मोरया, पुन्हा वर्षी लवकर या’ की गूंज वातावरण को भक्तिमय बना देती है। वहीं उत्तर भारत में श्रद्धालु भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का पूजन कर व्रत और कथा का आयोजन करते हैं।
अनंत चतुर्दशी धार्मिक आस्था, सामाजिक उत्सव और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि परमात्मा का स्वरूप अनंत है और उनके आश्रय में जीवन की हर कठिनाई का समाधान मिलता है। साथ ही यह अवसर हमें आस्था और उत्सवधर्मिता के अद्वितीय संगम का अनुभव कराता है।