
■ पंडित धीरज मिश्र
पितृपक्ष के दिनों में पूर्वजों की पूजा सर्वोपरि होती है, लेकिन इस दौरान घर के ईष्टदेव और आराध्य भगवान की उपासना भी उतनी ही आवश्यक है। जैसे प्रतिदिन भगवान को स्नान, वस्त्र, आभूषण और नैवेद्य आदि अर्पित करते हैं, उसी प्रकार पितृपक्ष में भी यह क्रम जारी रखना चाहिए।
● मंदिर जाने पर भी कोई रोक नहीं है, अपितु पितृपक्ष में मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करना और पूर्वजों की मुक्ति व तृप्ति के लिए प्रार्थना करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
● स्नान करें और धोए हुए वस्त्र (सफेद हो तो और अच्छा) धारण करें। तांबे या पीतल के पात्र में जल लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर तर्पण करें।
● अपराह्न का समय श्राद्ध तर्पण करना चाहिए।
पूर्वजों का स्मरण और श्राद्ध की मर्यादा
पितृपक्ष हिंदू धर्म का वह पवित्र समय है, जब हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। यह काल महालय अमावस्या तक चलता है। मान्यता है कि इन दिनों पितर धरती पर अपने वंशजों का आशीर्वाद देने आते हैं और तर्पण, श्राद्ध व दान से तृप्त होकर सद्गति प्राप्त कर मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं। इस अवधि को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है।

पितृपक्ष में क्या करें, क्या न करें?
● सर्वेषां राजतं पात्रमथवा राजतान्वितम् ॥
दत्तं स्वधां पुरोधाय पितॄन्प्रीणाति ।।
(पद्मपुराण, सृष्टि० ९।५८-५९) अर्थात पितरोंके लिये चाँदीके पात्रसे श्रद्धापूर्वक जलमात्र भी दिया जाय तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरोंके लिये अर्घ्य, पिण्ड और भोजनके पात्र भी चाँदीके ही श्रेष्ठ माने गये हैं।
● रौप्यांगुलीयं तर्जन्यां धृत्वा यत्तर्पयेत्पितॄन् । सर्वं च शतसाहस्त्रगुणं भवति नान्यथा ।। तथैवानामिकायां तु धृत्वा स्वर्णांगुलीं बुधः ।
तर्पयेपितृसन्दोहं लक्षकोटिगुणं भवेत् ॥ (पद्मपुराण, सृष्टि० ५१।५६-५७) अर्थात- जो अपनी तर्जनी अँगुलीमें चाँदीकी अँगूठी धारण करके पितरोंको तर्पण करता है, उसका सब तर्पण लाखगुना अधिक फल देनेवाला होता है। यदि वह अनामिका अँगुलीमें सोनेकी अँगूठी पहनकर तर्पण करे तो वह करोड़गुना अधिक फल देनेवाला होता है।
● पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना और साथ ही गाय, कौवे और कुत्तों को अन्न व जल देना अनिवार्य माना गया है।
● पितृपक्ष में ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, गायत्री मंत्र का जप, गीता-पाठ या भागवत कथा श्रवण पितरों को प्रसन्न करता है। कुछ न कर पाएं तो भगवान के नामों का कीर्तन अवश्य करें।
● पितृ कार्य में काले तिल का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें। सफेद तिल का प्रयोग वर्जित है।
● बैंगन, मूली, लौकी, कुम्हड़ा, उड़द, मसूर, सफेद तिल, सत्तू और काला नमक का सेवन अशुभ माना गया है।
● इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय या नए वस्त्र-गृह की शुरुआत करना वर्जित है।
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
धन्यवाद