
गंगा दशहरा केवल एक पर्व नहीं, यह आत्मा की सफाई, जीवन की सरलता, और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। इस दिन की हर क्रिया स्नान, दान, ध्यान हमें भीतर से हल्का करती है और हमें जोड़ती है उस दिव्यता से, जो हमारे अस्तित्व का आधार है। हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला गंगा दशहरा केवल एक तिथि नहीं बल्कि स्वर्ग से धरती पर आए धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार का स्मरण है। यह वह दिन है जब देवगंगा स्वर्ग से उतरकर राजा भागीरथ के तप और प्रयत्नों से पृथ्वी पर आईं और उनकी धारा ने धरती के कण-कण को पवित्र कर दिया।
सनातन संस्कृति में गंगा सिर्फ जल नहीं, जीवन की देवी मानी जाती हैं। उनके स्पर्श से मन, तन और आत्मा, तीनों की शुद्धि मानी जाती है। इस दिन का हर क्षण पुण्यदायक है और इसका धार्मिक प्रभाव सामान्य दिनों की तुलना में दस गुना अधिक होता है।
क्यों है गंगा दशहरा इतना विशेष?
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन किया गया स्नान, दान, जप और ध्यान विशेष फल देता है। यह पर्व सिर्फ मां गंगा का नहीं बल्कि भगवान शिव, पितरों, और प्रकृति तत्वों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर भी है। गंगा दशहरा उन लोगों के लिए खास है, जो भीतर की सफाई, सेवा भावना और श्रद्धा के मार्ग पर चलना चाहते हैं।
इस दिन क्या करें?
इस दिन दीपदान करें। यदि संभव हो तो गंगा में स्नान करें। नहीं तो स्नान जल में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान करें। रुद्राभिषेक, शिवपूजन और दान अवश्य करें। गंगा शिवजी की जटाओं में समाई थीं। अतः मां गंगा और भगवान शिव की संयुक्त पूजा इस दिन विशेष फलदायक मानी जाती है। दान में शीतलता प्रदान करनेवाली चीजें जैसे सत्तू, जलघड़े, छाता, पंखा, चप्पल, वस्त्र आदि का दान अत्यंत पुण्यकारी होता है।
हर हर गंगे । हर हर महादेव