● सूर्यकांत उपाध्याय

एक ब्राह्मण था, जो घर-घर जाकर पूजा-पाठ कर अपना जीवन यापन करता था। एक बार उसे नगर के राजा के महल से पूजा के लिए बुलावा आया। ब्राह्मण राजमहल का निमंत्रण पाकर प्रसन्नता से वहाँ पूजा करने गया। पूजा सम्पन्न कराकर जब वह लौटने लगा, तब राजा ने उससे प्रश्न किया, “हे ब्राह्मण देव! आप भगवान की पूजा करते हैं तो बताइए भगवान कहाँ रहते हैं? उनकी दृष्टि किस ओर है? और भगवान क्या कर सकते हैं?”
राजा का प्रश्न सुनकर ब्राह्मण अचंभित हो गया। कुछ समय विचार करने के बाद उसने कहा- “हे राजन! इस प्रश्न के उत्तर हेतु मुझे समय दीजिए।”
राजा ने उसे एक माह का समय दिया। ब्राह्मण प्रतिदिन इसी सोच में उलझा रहता कि उत्तर क्या होगा। समय बीतता गया और कुछ ही दिन शेष रह गए। उत्तर न मिल पाने के कारण वह उदास रहने लगा।
एक दिन उसे चिंतित देखकर उसका पुत्र बोला-“पिताजी! आप इतने उदास क्यों हैं?”
ब्राह्मण ने सारी बात बताई-“बेटा! कुछ दिन पूर्व मैं राजमहल पूजा कराने गया था। पूजा सम्पन्न कर जब लौटा, तो राजा ने मुझसे प्रश्न किया था-भगवान कहाँ रहते हैं, उनकी दृष्टि किस ओर है और भगवान क्या कर सकते हैं? उस समय मैं उत्तर न दे सका और राजा से एक माह का समय माँग लिया। अब समय पूरा होने को है पर मेरे पास उत्तर नहीं है, इसी कारण चिंतित हूँ।”
पुत्र ने कहा- “पिताजी! इसका उत्तर मैं दूँगा। आप मुझे अपने साथ राजमहल ले चलिए।”
एक माह पूरा होने पर ब्राह्मण अपने पुत्र को साथ लेकर राजमहल पहुँचा और राजा से कहा-“हे राजन! आपके प्रश्न का उत्तर मेरा पुत्र देगा।”
राजा ने उस बालक से वही प्रश्न किया।
बालक ने कहा-“हे राजन! क्या आपके राज्य में अतिथि का आदर-सत्कार नहीं होता?”
यह सुनकर राजा थोड़ा लज्जित हुआ और बालक को सम्मानपूर्वक स्थान दिया गया। फिर पीने के लिए दूध मँगवाया गया। बालक ने दूध का गिलास लिया और उसमें अंगुली डालकर बार-बार दूध को बाहर निकालकर देखने लगा। यह देखकर राजा ने पूछा-“यह क्या कर रहे हो?”
बालक बोला-“सुना है दूध में मक्खन होता है, मैं देख रहा हूँ कि मक्खन कहाँ है। आपके राज्य के दूध में तो मक्खन दिखाई ही नहीं दे रहा।”
राजा ने कहा-“मक्खन दूध में होता है पर वह ऐसे दिखाई नहीं देता। जब दूध को जमाकर दही बनाया जाता है और दही को मथा जाता है, तब मक्खन प्राप्त होता है।”
बालक ने कहा-“महाराज! यही आपके पहले प्रश्न का उत्तर है। जिस प्रकार दूध से दही और दही से मथकर मक्खन निकलता है, उसी प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के भीतर विद्यमान हैं पर उन्हें देखने के लिए सच्ची भक्ति आवश्यक है। जब कोई ब्रह्मनिष्ठ सत्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान, साधना, सत्संग और सेवा करता है, तभी आत्मा में छिपे परमात्मा का साक्षात्कार होता है।”
राजा बालक के उत्तर से प्रसन्न हुए और बोले-“अब मेरा दूसरा प्रश्न बताओ-भगवान किस ओर देखते हैं?”
बालक ने कहा-“इसके लिए मुझे एक मोमबत्ती चाहिए।”
मोमबत्ती लाई गई और जलाकर बालक ने कहा-“राजन! बताइए, इस दीपक की ज्योति किस ओर है?”
राजा ने कहा-“इसकी रोशनी चारों दिशाओं में समान रूप से फैल रही है।”
बालक बोला-“हे राजन! यही आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर है। जैसे दीपक की रोशनी सब ओर समान रूप से फैलती है, वैसे ही परमात्मा की दृष्टि सब पर समान रूप से रहती है। वे सर्वदृष्टा हैं और सभी प्राणियों के कर्मों को देखते हैं।”
राजा इस उत्तर से अत्यंत प्रसन्न हुए और अब अंतिम प्रश्न जानने को उत्सुक हुए।
उन्होंने कहा-“अब बताओ, भगवान क्या कर सकते हैं?”
बालक ने कहा-“इस प्रश्न का उत्तर मैं दूँगा पर पहले हमें स्थान बदलना होगा। आप मेरी जगह बैठिए और मैं आपकी जगह बैठूँगा।”
राजा सहमत हो गए। बालक राजसिंहासन पर बैठ गया और राजा नीचे खड़ा हो गया।
बालक ने कहा-“हे राजन! आपके अंतिम प्रश्न का उत्तर यही है। आपने पूछा था कि भगवान क्या कर सकते हैं। तो भगवान यही कर सकते हैं कि एक रंक को राजसिंहासन पर बैठा सकते हैं और राजा को साधारण मनुष्य बना सकते हैं। अर्थात वे रंक को राजा और राजा को रंक बना सकते हैं।”
राजा बालक की बुद्धि और उत्तरों से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उसे अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया।