● सूर्यकांत उपाध्याय

हनुमानजी श्रीराम की सेवा में तन्मय रहते थे। एक बार नारद जी के कहने पर उन्होंने गुरु विश्वामित्र का अभिवादन नहीं किया। इसे गुरु-अपराध मानकर विश्वामित्र ने श्रीराम से दंड तय करने को कहा। उन्होंने मृत्यु-दंड घोषित किया और अपराधी का नाम बताने से पूर्व श्रीराम से प्रतिज्ञा ली कि वे स्वयं अमोघ बाण से दंड देंगे।
जब हनुमानजी का नाम सामने आया तो वे उदास होकर माता अंजनी के पास पहुँचे। माता ने उन्हें स्मरण कराया कि जन्म के समय उन्हें राम-नाम की घुट्टी दी गई थी। उन्होंने कहा, ‘राम-नाम की शक्ति के आगे स्वयं राम की शक्ति भी महत्वहीन है। तुम केवल राम-राम का जप करो।’
हनुमानजी सरयू तट पर बैठकर अखंड राम-नाम जप करने लगे। संध्या समय जब श्रीराम ने अपने अमोघ बाण चलाए तो उनका हनुमानजी पर कोई प्रभाव न हुआ।
गुरु वशिष्ठ ने यह देखकर घोषणा की,
‘राम! आज यह प्रमाणित हो गया कि स्वयं राम से भी बड़ा राम का नाम है। राम-नाम ही महाशक्ति का सागर है। जो इसका जप करेगा, उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होंगी और वह मोक्ष का भागी बनेगा।’
तभी से लोक में कहा जाता है-
‘राम से बड़ा राम का नाम।’