● पितृ तृप्त होते हैं और वंश उन्नति होती है

■ पंडित धीरज मिश्र
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। यह पितृपक्ष में आने वाली विशेष एकादशी है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं। इस व्रत से स्वयं व्रती के पाप नष्ट होते हैं। पितृ तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं और वंश उन्नति होती है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
क्या है व्रत विधि?
व्रत करने वाले को दशमी तिथि से ही संयमित भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। पितरों के नाम से जल, तिल और पिंडदान करें। दिनभर उपवास कर संध्या के समय विष्णु सहस्रनाम या गीता पाठ करें। द्वादशी को ब्राह्मण भोजन और दान देने के बाद व्रत का पारण करें।
प्रचलित कथा
पद्म पुराण के अनुसार सतयुग में महिष्मति नगरी के राजा इंद्रसेन धर्मात्मा और विष्णु भक्त थे। एक दिन जब वे सभा में बैठे थे, तभी उनके स्वर्गीय पिता प्रकट हुए। उन्होंने कहा, पुत्र! पिछले जन्म के कुछ पापों के कारण मैं यमलोक में कष्ट भोग रहा हूँ। यदि तुम इंदिरा एकादशी का व्रत कर इसका फल मुझे दान कर दो तो मुझे मुक्ति मिल जाएगी।’
पिता की बात सुनकर राजा इंद्रसेन ने पितृपक्ष की इंदिरा एकादशी का विधिवत व्रत किया और उसका फल अपने पिता को अर्पित किया। व्रत के प्रभाव से उनके पिता को मोक्ष प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक चले गए। इसी कारण इस व्रत का नाम इंदिरा एकादशी पड़ा और यह पितृपक्ष की सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में मानी जाती है।
व्रत का समय और पारण
● व्रत: 17 सितंबर, 2025 (पूरा दिन)
● पारण: 18 सितंबर
(समय – प्रातः 06:27 से 08:53)