● सूर्यकांत उपाध्याय

एक गांव में संत महात्मा का आगमन हुआ। सभी लोग भेंट लेकर पहुंचे। उसी गांव का एक गरीब कारीगर भी सोच रहा था कि वह क्या भेंट करे। संयोग से उसके घर के पास तालाब में बेमौसम एक कमल खिला। उसने कमल तोड़ा, केले के पत्ते का दोना बनाया और उसमें रख दिया।
रास्ते में कई लोग जैसे-सेठ, नगर सेठ, मंत्री और यहां तक कि राजा भी उससे वह फूल खरीदना चाहते थे। किसी ने दो रुपये, किसी ने दस सिक्के, मंत्री ने सौ और राजा ने हज़ार चांदी के सिक्के देने की पेशकश की। पर गरीब कारीगर ने कहा- यह फूल बेचने का नहीं, महात्मा को भेंट करने का है। धन से पीढ़ियां नहीं तरतीं, महात्मा का आशीर्वाद ही जीवन संवारता है।’
वह महात्मा के चरणों में कमल और अपने आंसू अर्पित कर बोला-मेरे पास भेंट करने को यही है। कृपा कर स्वीकार करें।
महात्मा ने शिष्यों से कहा- इस गरीब ने आज समर्पण और भाव से वह कमा लिया जो हजारों राजा भी नहीं कमा सके। प्रभु की कृपा मन के भाव से ही मिलती है, और कुछ से नहीं।