● सूर्यकांत उपाध्याय

एक बार एक शिष्य अपने गुरु के पास आया और बोला, ‘गुरुदेव, मैं बहुत थक गया हूँ। जीवन में संघर्ष ही संघर्ष है। कोई राह नहीं दिखती।’
गुरु ने मुस्कराकर उसे एक गिलास पानी दिया और उसमें एक मुट्ठी नमक डालकर कहा, ‘इसे पीकर देखो।’
शिष्य ने पानी पिया और बोला, ‘गुरुदेव, पानी बहुत खारा हो गया है, पिया नहीं जा रहा।’
गुरु उसका हाथ पकड़कर पास के झील किनारे ले गए। झील में वही मुट्ठी नमक डालकर बोले, ‘अब इस पानी से पियो।’
शिष्य ने पानी पिया और बोला, ‘गुरुदेव, पानी तो बिल्कुल मीठा है।’
तब गुरु ने समझाया, ‘बेटा, दुख और परेशानियाँ भी नमक की तरह हैं। जितना बड़ा तुम्हारा मन और दृष्टिकोण होगा, उतना ही दुख छोटा लगता है। संकीर्ण मन में दुख असहनीय लगता है, लेकिन विशाल हृदय में वही दुख महत्वहीन हो जाता है।’
सीख: जीवन में कठिनाइयाँ आती रहेंगी, परंतु यदि हमारा दृष्टिकोण बड़ा है तो कोई भी दुख हमें तोड़ नहीं सकता।