
● सूर्यकांत उपाध्याय
पत्नी को लड़कर पीहर गए पांच दिन हो चुके थे। सतीश को नींद नहीं आ रही थी। वह करवटें बदल रहा था। रात के एक बजे पत्नी का फोन आया। उसने तुरंत उठा लिया। फोन उठाते ही राधिका बोली, ‘अभी तक जाग रहे हो?’
सतीश तुरंत बोला, ‘तुम भी तो जाग रही हो?’ काफी देर तक चुप्पी छाई रही। फिर सतीश को लगा जैसे वह रो रही है। वह बोला, ‘क्या हुआ? तुम तो कहकर गई थी न कि अब कभी लौटकर नहीं आऊँगी, न कभी फोन करूँगी। मुझ जैसे खड़ूस इंसान के साथ अब तुम्हें रहना ही नहीं है न? फिर क्यों रो रही हो?’
राधिका ने काफी देर तक जवाब नहीं दिया। फिर खुद को संयत करते हुए बोली, ‘तुम पुरुष हो न, एक औरत की भावनाएँ कभी नहीं समझ पाओगे। जब एक औरत कहती है कि पीहर चली जाऊँगी, तब वह चाहती है कि पुरुष उसे रोके, कहे कि तुम्हारे बिना दिल नहीं लगेगा, मत जाओ। जब वह बीमारी का बहाना करती है तो चाहती है कि तुम उसका हाल पूछो, परवाह दिखाओ। तुम्हें तो पत्नी के ज़रा भी नखरे उठाने नहीं आते।’
सतीश चुप था। वह बोली, ‘पाँच दिन हो गए पीहर आए हुए। एक पल भी ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने तुम्हारे फोन का इंतज़ार न किया हो। एक रात भी ढंग से सो नहीं पाई। लत लग गई है तुम्हारे हाथ का तकिया बनाकर सोने की।’ कहकर वह रोने लगी।
सतीश बोला, ‘मैं भी कहाँ सो पाया हूँ। थोड़ी सी आवाज होती है तो दौड़कर दरवाजे पर जाता हूँ। देखता हूँ शायद तू लौट आई है। तेरे बिना सब कुछ सूना-सूना है।’ इतना सुनकर राधिका के दिल को तसल्ली मिली। वह बोली, ‘चलो, अभी मुझे लेने आओ।’
वह बोला, ‘सुबह आ जाऊँगा। इतनी रात को तीस किलोमीटर का सफर करके आना मुश्किल नहीं होगा क्या?’ राधिका जिद करते हुए बोली, ‘मुझे नहीं पता कैसे आओगे, मगर अभी आओ। यहाँ आकर सो जाना, सुबह होने पर चलेंगे। पहली बार अकेली पीहर आई हूँ। औरतें बातें बना रही हैं। तुम अभी आओगे तभी मेरे दिल को तसल्ली मिलेगी।’
सतीश बोला, ‘आ रहा हूँ।’ पत्नी के दिल की तसल्ली के लिए वह आधी रात को अपने ससुराल पहुँचा। राधिका उसे देखकर भावुक हो गई। उसकी आँखें भर आईं।
