● सर्वपित्री अमावस्या पर गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़, पितरों के लिए किया पिंडदान

रवीन्द्र मिश्रा@मिर्जापुर
सर्वपित्री अमावस्या पर विंध्यवासिनी मंदिर के उत्तर तट स्थित हरसिंहपुर गंगा घाट पर हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की मोक्ष के लिए पिंडदान किया। पंडित आचार्य कमलेश कुमार दूबे ने बताया कि पिंडदान की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। सतयुग में सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने गया में पिंडदान किया था।
पितृपक्ष में मृतात्माओं के तर्पण के लिए जौ का आटा, चावल का आटा अथवा दूध से बने खोवा, काला तिल, घी, शहद और दूध मिलाकर 16 पिंड बनाए जाते हैं, जिन्हें पूर्वजों को याद कर अर्पित किया जाता है। आमतौर पर श्रद्धालु पहले जल अर्पित करते हैं और पितृ अमावस्या के दिन नदी, तालाब या गया तीर्थ में जाकर उनका पिंडदान और मुंडन संस्कार कराते हैं।
वायु पुराण के अनुसार गया तीर्थ में गयासुर नामक दैत्य के स्पर्श से जीवों को मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि श्रद्धालु गया जाकर विष्णु पद और गयासुर का दर्शन कर अपने पूर्वजों के लिए मुक्ति की कामना करते हैं।
रविवार, 21 सितंबर को सुबह 5 बजे से दोपहर 2 बजे तक भदोही, सुरियावां, पखवईआ, दलपतपुर, खमरिया, चेतगंज, नगवगपुर, तिलठी, मिश्रधाप, श्रीपट्टी, हरसिंहपुर, मल्लैपुर और सिता का अड्डा सहित आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग गंगा के किनारे पहुंचे और अपने सभी ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों को स्मरण कर उनका पिंडदान किया।
