● सूर्यकांत उपाध्याय

कार से उतरकर भागते हुए अस्पताल पहुँचे नौजवान बिजनेसमैन ने हाँफते हुए डॉक्टर से पूछा – “डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?”
डॉक्टर ने कहा – “अब वे ठीक हैं। माइनर स्ट्रोक था। सही समय पर दो बुजुर्ग लोग उन्हें यहाँ ले आए, वरना कुछ गंभीर हो सकता था।” डॉक्टर ने पीछे बैठे बुजुर्गों की ओर इशारा किया।
बिजनेसमैन ने राहत की साँस लेते हुए कहा – “थैंक्यू डॉक्टर, बाकी औपचारिकताएँ मेरी सेक्रेटरी देख रही है।” फिर वह उन बुजुर्गों की ओर मुड़ा – “थैंक्स अंकल, लेकिन मैं आपको पहचान नहीं पा रहा।”
एक बुजुर्ग मुस्कुराए – “सही कह रहे हो बेटा, तुम हमें नहीं पहचानोगे। हम तुम्हारी माँ के व्हाट्सएप फ्रेंड हैं।”
“क्या? व्हाट्सएप फ्रेंड?” – वह हैरान रह गया।
बुजुर्ग ने समझाया – “हमारा एक ग्रुप है 60+. इसमें 60 साल या उससे अधिक उम्र के लोग जुड़े हैं। रोज़ हर सदस्य को एक संदेश भेजकर अपनी उपस्थिति दर्ज करनी होती है। महीने में एक दिन पार्क में मिलना भी तय होता है। अगर कोई सदस्य मैसेज नहीं भेजता तो उसी दिन उसके घर जाकर हालचाल लिया जाता है। आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम दोनों वहाँ पहुँचे।”
नौजवान गम्भीर हो गया – “पर माँ ने कभी बताया नहीं…”
बुजुर्ग ने पूछा – “बेटा, माँ से आख़िरी बार कब बात की थी?”
उसे याद आया, पिछली दीवाली पर ही वह गिफ़्ट देने के बहाने माँ से मिला था।
बुजुर्गों ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा – “सुख-सुविधाओं के बीच कोई भी माँ-बाप अकेलेपन का शिकार न हो, इसी सोच से यह ग्रुप बनाया गया है। वरना दीवारों से बातें करना तो हमें भी आता है।” इतना कहकर वे बाहर निकल गए।
युवक उनकी ओर एकटक देखता रह गया।
शिक्षा : अपनों का समय-समय पर ख्याल रखें, हाल-चाल पूछते रहें। यही सच्ची सेवा और प्रेम है।
