● ‘जो चुभता है, वही लिखवाता है’ : डॉ. कनकलता

मुंबई। “इन कहानियों का मूलाधार मध्यवर्ग के स्वप्न और दुःस्वप्न हैं। उन सपनों को पाने की जद्दोजहद और उन्हें न पा सकने की हताशा का चित्रण कई कहानियों में गहरी संवेदनाओं के साथ हुआ है। इन कहानियों को पढ़ते समय पाठक स्वयं पात्र बनकर कहानी का हिस्सा हो जाता है, यही इन कहानियों की सबसे बड़ी ताक़त है।” यह विचार कथाकार और पत्रकार हरीश पाठक ने डॉ. कनकलता तिवारी के नए कहानी-संग्रह ‘हरा नोट’ पर ‘सृजन के रंग’ एवं ‘प्रतीक प्रकाशन’ द्वारा आयोजित विमर्श में व्यक्त किए। वे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे।
विशिष्ट अतिथि कवि और मंच संचालक देवमणि पांडेय ने कहा, “इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ मनोविज्ञान पर आधारित हैं। पात्रों की मनोदशा का सटीक विश्लेषण इन कहानियों में मिलता है।”
डॉ. अंजू शर्मा ने कहा, “कनकलता जी की कहानियों के पात्र कल्पना में नहीं, बल्कि हकीकत में जीते हैं।”
डॉ. मृदुला पंडित ने कहा, “इनके पात्र अपने भीतर की आग को छुपाए रहते हैं। वे आग लिए हुए पात्र हैं।”
डॉ. प्रमिला शर्मा ने कहा, “इन कहानियों के अधिकांश पात्र स्त्रियाँ हैं। स्त्री घर की नींव होती है और कनकलता जी ने स्त्री के हर पक्ष को कहानियों में उभारा है।”

अपनी बात रखते हुए डॉ. कनकलता तिवारी ने कहा, “मुझे जब जो चुभता है, वही मुझसे लिखवाता है। इस संग्रह में कुछ कहानियाँ वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं, जो हमारे समाज में घटित हुई हैं। हर परिवार का हर रूप इन कहानियों में झलकता है।”
कार्यक्रम में डॉ. कृपाशंकर मिश्र, मीनाक्षी शर्मा और श्रीधर मिश्र ने भी अपने विचार रखे। प्रज्ञा पद्मजा ने एक कहानी का अंश पाठ किया। संचालन मधुबाला शुक्ल ने किया।
