● सूर्यकांत उपाध्याय

किसी गांव में चार गहरे मित्र रहते थे। वे हमेशा साथ खाते-पीते और साथ रहते। उनमें से तीन पढ़े-लिखे थे किंतु चौथा तकलीफों के कारण पढ़ न सका। फिर भी वह बुद्धिमान था। अनपढ़ होने के कारण उसके तीनों दोस्त अक्सर उसका उपहास उड़ाते पर वह दोस्ती के नाते बुरा नहीं मानता और मुस्कुरा कर टाल देता।
एक दिन वे चारों बात कर रहे थे कि इनमें से सबसे बुद्धिमान कौन है। अंततः तय हुआ कि वे दूसरे राज्य जाकर राजा को प्रसन्न करेंगे और जो सबसे अधिक धन लाएगा वही सबसे बड़ा बुद्धिमान होगा। यह निश्चय कर वे मार्ग पर निकले। रास्ते में तीनों मित्र चौथे पर व्यंग्य करते रहे, और वह चुप्पी से सहता गया। दो दिन चलने के बाद वे एक जंगल में पहुँचे; दिन ढल रहा था, इसलिए वहीं रुकने का निर्णय लिया पर चौथा मित्र सहमत नहीं था। उसने कहा, “मित्रों, कुछ ही देर में अँधेरा हो जाएगा, हमें अभी निकल जाना चाहिए।” पर तीनों ने उसे चुप करा दिया।
तभी उनकी नजर किसी मरे जानवर पर पड़ी जिसकी चमड़ी गल चुकी थी, केवल हड्डियाँ बची थीं। एक ने सुझाया कि जाने से पहले देखें कौन बुद्धिमान है। दूसरे ने हड्डियाँ जोड़कर ढांचा तैयार कर दिया; पहले ने उस पर मांस, चमड़ी, नसें और खून पैदा कर दिए और ढांचा शेर बन गया। तीसरे ने कहा, ‘अब मैं इसमें जान फूँकूंगा।’ चौथे ने चिंता व्यक्त की, “यह शेर जीवित हो गया तो हम सबको खा जाएगा।” पर उस पर हँसते हुए कहा गया कि वह अनपढ़ है और चुप रहे।
चौथा मित्र पेड़ पर चढ़ गया ताकि सुरक्षित रहे। तीसरे ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और शीघ्र ही शेर दहाड़ता हुआ जीवित हो उठा। शेर ने सामने तीनों मनुष्यों को देखा और वह उन पर टूट पड़ा। उसने एक को पंजे से पकड़ा, दूसरे को धक्का देकर गिराया और तीसरे को दांतों से जकड़ा; कुछ ही क्षणों में तीनों शेर का आहार बन गए। पेड़ पर बैठा चौथा मित्र यह दृश्य देखकर विलाप कर उठा और सोचने लगा, काश उन्होंने मेरी बात मानी होती।
शिक्षा: ज्ञान का प्रयोग करने से पहले उसके परिणाम टटोल लें। पढ़ा-लिखा होना बुद्धिमत्ता नहीं बल्कि विवेक ही जीवन रक्षक होता है। कभी-कभी अनपढ़ व्यक्ति भी विवेक में आगे निकल जाता है।
