● सूर्यकांत उपाध्याय

बहुत समय पहले एक पेड़ पर एक हंस और एक कौआ रहते थे। दोनों मित्र थे, परंतु स्वभाव में अंतर था। हंस दयालु था जबकि कौआ ईर्ष्यालु और दुष्ट प्रवृत्ति का।
गर्मियों के दिनों में एक थका हुआ यात्री उस पेड़ के नीचे आकर विश्राम करने लगा। उसने धनुष-बाण पास रखे और नींद में सो गया। थोड़ी देर में सूर्य की किरणें उसके चेहरे पर पड़ने लगीं। यह देखकर हंस को दया आई। वह उड़कर नीचे आया और अपने पंख फैलाकर यात्री के मुख पर छाया कर दी।
गहरी नींद में यात्री का मुंह खुला रह गया। तभी कौए को यह सुखद दृश्य बर्दाश्त न हुआ। उसने यात्री पर बीट कर दी और उड़ गया। हंस कुछ समझ पाता, इससे पहले कौआ वहां से जा चुका था।
जब यात्री की नींद खुली और उसने ऊपर देखा तो पेड़ पर केवल हंस ही दिखाई दिया। वह यह समझ बैठा कि यही उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाला है। क्रोधित होकर उसने धनुष उठाया और हंस पर बाण चला दिया। निर्दोष हंस घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा और उसके प्राण निकल गए।
दयालु हंस ने उपकार किया पर उसे दूसरों की भूल की सजा भुगतनी पड़ी। उसकी एकमात्र गलती यह थी कि उसने दुष्ट कौए से मित्रता की थी।
शिक्षा: दुष्ट और कपटी व्यक्ति से मित्रता हमेशा घातक सिद्ध होती है।
