
मुंबई। महाराष्ट्र में बारिश और बाढ़ से तबाही झेल रहे किसानों की मदद को लेकर अब राजनीति गरमा गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार गुट) के अध्यक्ष शरद पवार ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि सरकार किसानों की मदद करने के बजाय गन्ना किसानों से ही मुख्यमंत्री राहत कोष में योगदान वसूल रही है।
पवार ने कहा, “मुझे आश्चर्य है कि सरकार ने मराठवाड़ा के बाढ़ प्रभावित किसानों को राहत देने के लिए गन्ना किसानों से अतिरिक्त शुल्क लेने का फैसला किया है। सरकार को इस निर्णय पर तुरंत पुनर्विचार करना चाहिए।”
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि राज्य की चीनी मिलें प्रति टन गन्ने पर 10 रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष और 5 रुपये बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए जमा करेंगी। इस कदम का कई किसान संगठनों ने विरोध किया है। राजू शेट्टी, कांग्रेस एमएलसी सतेज पाटिल और राकांपा (शरद गुट) के विधायक रोहित पवार ने इसे “अनुचित वित्तीय बोझ” बताया है।
सरकार का तर्क है कि यह योगदान मराठवाड़ा क्षेत्र के उन परिवारों को तत्काल राहत देने के लिए जरूरी है, जिनकी आजीविका बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुई है।
इसी बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि यह धन किसानों से नहीं बल्कि गन्ना मिलों के मुनाफे से आएगा। उन्होंने अहमदनगर (अहिल्यानगर) में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “महाराष्ट्र में करीब 200 मिलें हैं। प्रत्येक मिल से लगभग 25 लाख रुपये का योगदान अपेक्षित है। किसानों पर किसी तरह का वित्तीय भार नहीं डाला जाएगा।”
कार्यक्रम में मौजूद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी फडणवीस के रुख का समर्थन किया और कहा कि कुछ लोग इस निर्णय को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए यह कदम आवश्यक और संवेदनशील है।
इस तरह मराठवाड़ा के किसानों की मदद के नाम पर शुरू हुई यह पहल अब महाराष्ट्र की राजनीति में नया विवाद बन गई है, जहां एक ओर विपक्ष इसे ‘किसान विरोधी नीति’ कह रहा है, वहीं सरकार इसे ‘मानवीय कर्तव्य’ बताकर बचाव में खड़ी है।
