● सूर्यकांत उपाध्याय

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में आदित्य नाम का युवक रहता था। बचपन से ही उसके मन में एक प्रश्न गूंजता रहता कि क्या सच में मंत्रों में कोई शक्ति होती है? क्या कोई साधक केवल ध्यान और जप से चमत्कार कर सकता है?
आदित्य ने अनेक पुस्तकों में पढ़ा था कि प्राचीन ऋषियों ने मंत्र शक्ति से असंभव को संभव कर दिखाया। किसी ने कुंडलिनी जागरण का वर्णन किया था तो किसी ने मंत्र सिद्धि और तांत्रिक शक्तियों के अद्भुत अनुभव साझा किए थे। फिर भी उसके मन में संदेह बना रहा।
एक दिन वह गाँव के बाहर स्थित एक प्राचीन मंदिर में पहुँचा। वहाँ एक वृद्ध साधक ध्यान में लीन थे। शांत नेत्र, सफेद दाढ़ी और चारों ओर दिव्य आभा। आदित्य ने उनके पास जाकर अपनी जिज्ञासा रखी। साधक मुस्कुराए और बोले, “बेटा, मंत्र शक्ति किताबों में नहीं, अनुभव में छिपी है। साधना करो, तुम स्वयं सत्य जान जाओगे।”
उन्होंने आदित्य को गायत्री मंत्र का जप करने का नियम दिया-
- प्रतिदिन सूर्योदय पर ध्यान करना
- 108 बार मंत्र जप करना
- मन को पूर्णतः एकाग्र रखना।
प्रारंभ में आदित्य को केवल शांति का अनुभव हुआ पर धीरे-धीरे उसके भीतर एक नई ऊर्जा प्रवाहित होने लगी। उसका मन स्थिर हो गया, भय और नकारात्मकता समाप्त होने लगी। अब छोटी-छोटी बातों से घबराने वाला आदित्य निर्भय हो चुका था।
चालीसवें दिन की रात उसने ध्यान में एक दिव्य प्रकाश देखा जो उसकी रीढ़ से ऊपर की ओर उठ रहा था। यह वही अनुभव था जिसे लोग कुंडलिनी जागरण कहते हैं।
धीरे-धीरे गाँववाले उसके पास आने लगे। कोई रोग से पीड़ित था, कोई चिंता से। जब आदित्य उन्हें मंत्र ध्यान सिखाता, सब कहते, “यह तो चमत्कार है!”
आदित्य समझ गया कि मंत्र शक्ति कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि मानव चेतना को जगाने वाला विज्ञान है। असली चमत्कार बाहर नहीं, हमारे भीतर होता है।
मंत्र केवल शब्द नहीं, वह वहन करता है दिव्य कंपन जो साधक के मन, तन और आत्मा को प्रकाशित कर देता है।
