◆ शास्त्रसम्मत तिथि और प्रदोषकाल में रहेगा लक्ष्मी पूजन

● पंडित धीरज मिश्र
दीपावली का पर्व केवल दीपों का उत्सव नहीं, बल्कि मां लक्ष्मी की आराधना और समृद्धि का पावन अवसर है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक लक्ष्मी पूजन करने से साधक पर माता की कृपा वर्ष भर बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार दीपावली सदैव कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जानी चाहिए और लक्ष्मी पूजन प्रदोषकाल में किया जाता है। इस वर्ष पंचांग अनुसार अमावस्या दो दिनों 20 और 21 अक्तूबर तक रहने से श्रद्धालुओं के बीच पर्व की तिथि को लेकर कुछ भ्रम बना हुआ है।

पंचांग गणना के अनुसार 20 अक्तूबर 2025 को अमावस्या तिथि दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर प्रारम्भ होगी और 21 अक्तूबर को सायंकाल 5 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार 20 अक्तूबर को सूर्यास्त (5:50 बजे) के समय प्रदोषकाल में अमावस्या तिथि विद्यमान रहेगी जबकि 21 अक्तूबर को सूर्यास्त (5:49 बजे) के बाद अमावस्या मात्र सात मिनट तक ही रहेगी।
शास्त्रों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि यदि सूर्यास्त के पश्चात अमावस्या तिथि एक घड़ी (लगभग 24 मिनट) तक विद्यमान न रहे, तो वह ग्राह्य नहीं मानी जाती। इस दृष्टि से जिन नगरों में सूर्यास्त के बाद अमावस्या इतनी अवधि तक नहीं रहेगी, वहां 21 अक्तूबर को दीपावली मान्य नहीं होगी।

अतः भारतवर्ष के अधिकांश क्षेत्रों विशेषकर उत्तर भारत में 20 अक्तूबर 2025, सोमवार को दीपावली पर्व मनाना शास्त्रसम्मत और पुण्यदायक रहेगा। उस दिन प्रदोषकाल एवं रात्रि दोनों में अमावस्या तिथि रहेगी, जो लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।

साधुवाद