◆ आज की कथा सुबह 10 से

प्रतापगढ़। पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज के कृपापात्र शिष्य पूज्य राजन महाराज के व्यासत्व में परानूपुर, कुंडा श्रृंगवेरपुर, प्रतापगढ़ में 11 से 19 अक्तूबर तक प्रतिदिन आनंद पांडे के संकल्प तथा लोकप्रिय विधायक कुँवर रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) के संरक्षण में चल रही दिव्य रामकथा के अष्टम दिवस पर राजन महाराज ने भरत चरित्र के माध्यम से रामकथा का भावपूर्ण वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि अयोध्या से भरत जी पूरे अवध समाज को लेकर चित्रकूट रामजी से मिलने जाते हैं। श्रेष्ठ की अनुपस्थिति में स्वयं को अनुशासन में रखना ही जीवन की श्रेष्ठता है। मनुष्य भजन और पाप, दोनों ही समय एकांत चाहता है, किंतु विपत्ति में वही स्थिर रहता है जो भगवान में अनुरक्त होता है। भरत जी ने क्षात्रधर्म त्यागकर केवल प्रभु के चरणों में जन्म-जन्म की भक्ति मांगी।
राजन महाराज ने कहा कि सगुण उपासक को मोक्ष की नहीं, प्रेम की कामना करनी चाहिए। प्रेम की सर्वोच्च अवस्था रति है जहाँ अपेक्षा समाप्त हो जाती है। भरत जी का यह चरित्र सिखाता है कि जीवन में जब भी कुछ मांगना हो तो केवल भक्ति मांगनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भगवान के चरणों में अनुराग मानव जीवन का आभूषण है। भक्ति पद से उतरना नहीं पड़ता, इसीलिए यह पद अभूतपूर्व है। भरत मिलाप का भावमय वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, “जितना त्याग कर आप भगवान की ओर बढ़ते हैं, उतना ही त्याग कर भगवान आपकी ओर आते हैं।”
राजन महाराज ने आगे आरण्यक और किष्किन्धा कांड में प्रवेश करते हुए जटायु उद्धार, सबरी प्रेम, नवधा भक्ति तथा बालिवध के प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण किया। कथा में छत्तीसगढ़ से संत अवधेशदास जी महाराज, मानस चातकी वैदेही जी, ऑस्ट्रेलिया से डॉ. ममता और कुंडा के विधायक कुँवर रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।
