■ सीआईए के पूर्व अधिकारी जान किरियाकोऊ का दावा

नई दिल्ली।
सीआईए के पूर्व अधिकारी जान किरियाकोऊ ने कहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक युद्ध छिड़ा तो पाकिस्तान के लिए परिणाम अनुकूल नहीं होंगे। एक विशेष साक्षात्कार में किरियाकोऊ ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को यह स्वीकार करना होगा कि भारत के साथ लड़ाई में उसे कोई सकारात्मक लाभ मिलने की कोई सम्भावना नहीं है।
किरियाकोऊ के अनुसार भारत अब पाकिस्तान की परमाणु धमकी को सहन नहीं करेगा और किसी भी बड़े आतंकी हमले पर निर्णायक प्रतिक्रिया की नीति अपनायेगा। उन्होंने बताया कि 2002 में पाकिस्तान में कार्यरत रहते हुए उन्हें अनौपचारिक स्रोतों से बताया गया था कि पेंटागन के हाथों में पाकिस्तानी परमाणु हथियारों का कुछ नियंत्रण था।
किरियाकोऊ का कहना था कि तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कुछ नियंत्रण अमेरिका को सौंपा था जबकि पाकिस्तानी सार्वजनिक रूप से इस बारे में बार बार अलग बयान देते रहे। जब उनसे पूछा गया कि क्या यह जानकारी भारत के साथ साझा की गयी थी तो उन्होंने इस संभावना पर संदेह जताया और कहा कि अमेरिका ने शायद इसे भारत के साथ स्पष्ट रूप से साझा नहीं किया होगा। विदेश नीति के स्तर पर दोनों पक्षों को यही कहा गया कि यदि लड़ना ही है तो वह कम समय के लिए और गैर परमाणु रूप में होना चाहिए।
परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से वैश्विक हालात बदल जाएंगे, इसलिए दोनों पक्षों ने अब तक संयम दिखाया है, उन्होंने जोड़ा। किरियाकोऊ ने यह भी कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु प्रसार के मामलों में चूक की। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पाक के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान पर अमेरिका की नजर थी और अगर अमेरिका ने कड़ी कार्रवाई की होती तो पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम आज ऐसी मजबूती पर न होता।

2002 के तनावपूर्ण दौर का जिक्र करते हुए किरियाकोऊ ने बताया कि उस समय भारत और पाकिस्तान युद्ध के कगार पर पहुंच गये थे। 2001 के संसद हमले के बाद भारत ने आपरेशन पराक्रम चलाया था और बाद में अमेरिका ने वार्ता कर स्थिति को ठंडा किया। उस समय वे इतने चिंतित थे कि उन्होंने इस्लामाबाद में अपने सहयोगियों के परिवारों को अमेरिका भेज दिया था।
मुंबई 2008 हमलों के संदर्भ में किरियाकोऊ ने कहा कि वह इन हमलों को अल कायदा का काम नहीं मानते बल्कि इसके पीछे पाकिस्तान समर्थित कश्मीरी समूहों का हाथ था। उन्होंने यह भी कहा कि आईएसआई में दो धड़े सक्रिय हैं, एक जिसे आधुनिक प्रशिक्षण मिला है और दूसरा वह पारम्परिक, धार्मिक तत्व जो कश्मीरी आतंकी समूहों और जैश जैसे संगठन खड़े करते हैं।
किरियाकोऊ ने यह भी स्वीकार किया कि कभी-कभी खुफिया पहचान में गलतियां भी हो जाती हैं; 2002 में एक आतंकवादी को अल कायदा से जोड़कर पकड़ा गया, जबकि वह लश्कर ए तैयबा का सदस्य निकला और उसी छापे में उन्हें अल कायदा का ट्रेनिंग मैनुअल मिला, जिससे पाकिस्तान की सरकार और आतंकवादी नेटवर्क के बीच संबंधों के संकेत मिले।
