■ सूर्यकांत उपाध्याय

माता पार्वती राजा हिमावन (हिमालय) की पुत्री हैं, इस कारण उन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, देवी गंगा का अवतरण भी हिमालय से हुआ था, अतः वे माता पार्वती की बहन मानी जाती हैं। एक कथा के अनुसार एक बार इन दोनों बहनों में शिवजी को लेकर विवाद हो गया, जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।
एक बार भगवान शिव अपने परम निवास कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ थे। उनके साथ माता पार्वती भी ध्यान में लीन थीं। शिव और शक्ति का यह मनोहर रूप अत्यंत मोहक प्रतीत हो रहा था।
उनके परम भक्त नंदी जी इस अद्भुत दृश्य को निहार रहे थे। दोनों का यह सुंदर स्वरूप देखकर नंदी जी की आँखों से आनंद के आँसू बह निकले। जैसे ही अपने भक्त की आँखों से बहते अश्रुओं का भान महादेव को हुआ, उन्होंने नेत्र खोले।
उनके समक्ष साक्षात गंगाजी भी खड़ी थीं।
महादेव ने आश्चर्य से कहा,“देवी गंगे! आप यहाँ?”
गंगाजी ने विनम्रता से उत्तर दिया, “हे आदिपुरुष! आपके इस रूप को देखकर मैं आप पर मोहित हो गई हूँ। कृपा कर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें।”
माँ गंगा के ये शब्द सुनकर माँ पार्वती के कान खड़े हो गए। वे क्रोध से लाल हो उठीं और बोलीं-“देवी गंगे, मर्यादा मत लाँघिए! मत भूलिए, महादेव मेरे पति हैं!”
यह सुनकर गंगाजी मुस्कुराईं और बोलीं,“अरे बहन! क्या अंतर पड़ता है? भले ही तुम महादेव की पत्नी हो पर वे अपने मस्तक पर तो मुझे ही धारण करते हैं। जहाँ तुम नहीं पहुँच सकतीं, वहाँ मैं सदैव उपस्थित रहती हूँ।”
गंगा के यह वचन सुनते ही पार्वती का क्रोध भयंकर हो उठा। उनका मुखमंडल अग्नि के समान दीप्त हो गया।
क्रोधवश माँ पार्वती बोलीं, “गंगे! तुमने बहन का धर्म भुला दिया है। मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि तुम्हारे जल में मृत देह बहेंगी! जगत के पापों को धोते-धोते तुम मैली हो जाओगी, और तुम्हारा गर्व चूर हो जाएगा। तुम्हारा रंग भी काला पड़ जाएगा!”
माँ गंगा यह श्राप सुनते ही महादेव और पार्वती के चरणों में गिर पड़ीं। उन्होंने पश्चातापपूर्वक क्षमा याचना की। तब महादेव ने कहा, “हे गंगे! यह श्राप अब फलित होगा, पर तुम्हारे पश्चाताप से प्रसन्न होकर हम तुम्हें मुक्ति का वर देते हैं। हे गंगे! तुम जनमानस के पापों से दूषित अवश्य होओगी, परंतु संतजनों के स्नान से पुनः शुद्ध हो जाओगी।”
इस प्रकार भगवान शिव ने माँ गंगा को आशीर्वाद दिया। तभी से गंगा में स्नान से पाप धुलने लगे। लोग दूर-दूर से गंगास्नान करने आते हैं और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
और जब-जब कुंभ का आयोजन होता है, तब-तब संतों के पवित्र स्नान से माँ गंगा पुनः पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाती हैं।
