■ सूर्यकांत उपाध्याय

चार साल से किशनगढ़ गाँव में बारिश की एक बूँद तक नहीं गिरी थी। सभी बहुत परेशान थे। हरिया भी अपनी बीवी और बच्चों के साथ जैसे-तैसे समय काट रहा था।
एक दिन अत्यंत व्यथित होकर वह बोला, “अरे ओ मुन्नी की माँ, जरा बच्चों को लेकर पूजा घर में तो आओ…”
बच्चों की माँ, छह साल की मुन्नी और चार साल के राजू को लेकर पूजा घर में पहुँची।
हरिया हाथ जोड़कर भगवान के सामने बैठा था। वह रुंधी हुई आवाज़ में अपने आँसू छिपाते हुए बोला,“सुना है भगवान बच्चों की जल्दी सुनते हैं… चलो, हम सब मिलकर ईश्वर से बारिश के लिए प्रार्थना करते हैं।”
सभी अपने-अपने तरीके से बारिश के लिए प्रार्थना करने लगे।
मुन्नी मन ही मन बोली,“भगवान जी, मेरे बाबा बहुत परेशान हैं… आप तो सब कुछ कर सकते हैं… हमारे गाँव में भी बारिश कर दीजिए न…”
पूजा समाप्त होने के कुछ देर बाद हरिया उठा और घर से बाहर निकलने लगा।
“आप कहाँ जा रहे हैं, बाबा?” मुन्नी ने पूछा।
“बस ऐसे ही, खेत तक जा रहा हूँ बेटा…” हरिया ने बाहर निकलते हुए कहा।
“अरे, रुको-रुको… अपने साथ ये छाता तो ले जाओ!” मुन्नी दौड़कर गई और खूंटी पर टंगा छाता उठा लाई।
छाता देखकर हरिया बोला,“अरे! इसका क्या काम, अब तो शाम होने को है… धूप भी चली गई है…”
मुन्नी मासूमियत से बोली, “अरे बाबा, अभी थोड़ी देर पहले ही तो हमने प्रार्थना की है…कहीं बारिश हो गयी तो…!”
मुन्नी का जवाब सुनकर हरिया स्तब्ध रह गया। कभी वह आसमान की ओर देखता, तो कभी अपनी बिटिया के भोले चेहरे की तरफ…
उसी क्षण उसे लगा मानो कोई आवाज़ उससे कह रही हो-“प्रार्थना करना अच्छा है, लेकिन उससे भी ज़रूरी है इस बात में विश्वास रखना कि तुम्हारी प्रार्थना सुनी जाएगी… और फिर उसी विश्वास के साथ काम करना।”
हरिया ने तुरंत अपनी बेटी को गोद में उठा लिया, उसके माथे को चूमा और छाता हाथ में लेकर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया।
मित्रों, हम सभी प्रार्थना तो करते हैं, परंतु अपनी प्रार्थना पर पूर्ण विश्वास नहीं रखते। ऐसे में हमारी प्रार्थना केवल शब्द बनकर रह जाती है, वास्तविकता में नहीं बदलती।
सभी धर्मों में विश्वास की शक्ति का उल्लेख है। कहते हैं “दृढ़ विश्वास हो तो इंसान पहाड़ भी हिला सकता है।” और यह कोई कहावत मात्र नहीं, बल्कि दशरथ मांझी के रूप में इसका साक्षात प्रमाण भी हमारे सामने है।
इसलिए यदि आप अपनी पूजा को सच्चे अर्थों में सफल होते देखना चाहते हैं तो ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें और ऐसा आचरण करें मानो आपकी प्रार्थना सुनी ही जाने वाली हो।
