
■ कानपुर।
पूज्य प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से रामकथा का सारगर्भित विवेचन करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्वकृत कर्मों के अनुसार ही जीवन जीता है, इसलिए किसी के स्वभाव को बदलने का प्रयास व्यर्थ है। श्रद्धा के बिना भगवान और उनकी कथा के प्रति स्नेह संभव नहीं। श्रीराम का चरित अदोष है, उनके गुणों का अंश मात्र भी जो अपने जीवन में धारण करता है, वह स्वयं महान बन जाता है। यही कारण है कि इस ग्रंथ का नाम रामचरितमानस रखा गया अर्थात वह मानस जो राम के चरित्र से पवित्र हुआ।
महाराजश्री ने कहा कि प्रसन्नता से किया गया हर कार्य दिव्यता को प्राप्त करता है। जीवन में किए गए सत्कर्म ही हमारी वास्तविक पूंजी हैं। उन्होंने कहा, “अर्थ से श्रेष्ठ परम अर्थ होता है, इसलिए एकत्रीकरण की लालसा से बचकर पुण्यवृद्धि करनी चाहिए।” सत्य, तप, दया और दान में से किसी एक का भी दृढ़ पालन जीवन को सफल बना देता है।
सती प्रसंग का उल्लेख करते हुए महाराजश्री ने कहा कि असत्य बोलकर भगवान का परीक्षण करने के कारण सती को उसका परिणाम भुगतना पड़ा। कथा के प्रथम दिवस पर प्रस्तुत उनके भजनों से पूरा पांडाल भावविभोर हो उठा और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।

कानपुर के दीनदयाल सनातन धर्म विद्यालय, आजाद नगर में 8 से 16 नवम्बर तक प्रतिदिन सायं 4 से 7 बजे तक आयोजित इस नौ दिवसीय रामकथा के शुभारंभ अवसर पर दीप प्रज्वलन उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना और आर.एस.एस. के पदाधिकारी रामाशीष ने किया।
रामाशीष ने कहा कि यह वही भूमि है जहाँ से पं. दीनदयाल उपाध्याय के जीवन में नया मोड़ आया था। यह स्थल तप, शिक्षा और संस्कार की त्रिवेणी है।
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि “प्रेमभूषण जी महाराज की वाणी में ओज, प्रेम, शीलता और नम्रता का अद्भुत संगम है। रामजन्म आंदोलन के बाद से हमारी यात्राएँ समानांतर चलीं, और आज भी उनका स्नेह मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।”
