■ सूर्यकांत उपाध्याय

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे। एक गरीब और दूसरा अमीर। दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राह्मण की पत्नी उसे रोज ताने देती और झगड़ती रहती थी।
एक दिन एकादशी के अवसर पर गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आकर जंगल की ओर चल पड़ता है। उसके मन में विचार आता है कि जंगल में कोई शेर या मांसाहारी जीव उसे मारकर खा जाएगा; उस जीव का पेट भर जाएगा और वह स्वयं रोज की झिकझिक से मुक्त हो जाएगा।
जंगल में जाते हुए उसे एक गुफा दिखाई देती है। वह गुफा की ओर जाता है। गुफा में एक शेर सो रहा होता है और उसकी नींद में बाधा न पड़े, इसलिए वहां हंस पहरा दे रहा होता है।
हंस दूर से ब्राह्मण पुत्र को आते देख चिंता में पड़ जाता है। वह सोचता है कि यह ब्राह्मण आएगा, शेर जागेगा और इसे मारकर खा जाएगा; एकादशी के दिन मुझे पाप लगेगा। इसे बचाऊं कैसे?
उसे उपाय सूझता है और वह शेर के भाग्य की प्रशंसा करते हुए ऊंची आवाज में कहता है, “हे जंगल के राजा! उठो, जागो! आज तुम्हारे भाग्य खुल गए हैं। एकादशी के दिन स्वयं विप्रदेव तुम्हारे द्वार आए हैं। जल्दी उठो, इन्हें दक्षिणा दो और सम्मानपूर्वक विदा करो। तुम्हारा मोक्ष हो जाएगा। ऐसा दिन शायद फिर तुम्हारी जिंदगी में न आए। तुम्हें पशु योनि से छुटकारा मिल जाएगा।”
शेर दहाड़ते हुए उठता है। हंस की बात उसे सही लगती है। वह अपने पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने निकालकर ब्राह्मण के पैरों में रख देता है, सिर झुकाता है और उनके चरण चाट कर सम्मान प्रकट करता है।
हंस ब्राह्मण को इशारे से समझाता है, “विप्रदेव, ये गहने उठाइए और जितना जल्दी हो सके अपने घर लौट जाइए। यह सिंह है, कब इसका मन बदल जाए, कहा नहीं जा सकता!”
ब्राह्मण बात समझकर घर लौट जाता है। पड़ोसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब यह सब पता चलता है तो वह भी अगली एकादशी को अपने पति को उसी शेर की गुफा की ओर जाने को मजबूर करती है।
अब शेर का पहरेदार बदल चुका होता है। नया पहरेदार होता है कौवा।
कौवे की स्वभावानुसार वह सोचता है, ‘बहुत अच्छा! ब्राह्मण आया है। शेर को जगाऊंगा। शेर की नींद में खलल पड़ेगी, वह गुस्साएगा और ब्राह्मण को मारेगा। कुछ न कुछ मुझे भी खाने को मिल जाएगा।’
यह सोचकर वह जोर जोर से “कांव कांव” करता है। शेर गुस्से में जाग जाता है। उसकी नजर जैसे ही दूसरे ब्राह्मण पर पडती है, उसे हंस की बात याद आ जाती है। वह समझ जाता है कि कौवा क्यों कांव कांव कर रहा है।
वह अपने पहले किए धर्म का नाश नहीं करना चाहता, परंतु शेर तो शेर है, जंगल का राजा। वह दहाड़ते हुए कहता है, “हंस उड़ सरवर गए और अब काग भये प्रधान। थे तो विप्रा, थांरे घरै जाओ… मैं किनाइनी जिजमान।”
अर्थात अच्छी सोच और अच्छी प्रवृत्ति वाले हंस तो सरोवर को उड़ गए हैं। अब कौवा प्रधान पहरेदार है, जो मुझे तुम्हें मारने के लिए उकसा रहा है। मेरी बुद्धि फिर जाए, उससे पहले ही हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ। शेर कभी किसी का जजमान नहीं हुआ; वह तो हंस था, जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।
दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर घर की ओर भाग जाता है।
शिक्षा : जो किसी के दुख को देखकर सचमुच दुखी होता है और उसका भला सोचता है, वह हंस है और जो किसी का सुख नहीं देख सकता, ईर्ष्या रखता है और दूसरों को दुखी देखना चाहता है, वह कौवा है।
