
■ न्यूयॉर्क।
बीते कई बरसों से शिक्षा, रोजगार और राजनीति में लैंगिक समानता पर चर्चा होती रही है पर इसी दौरान एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन धीरे-धीरे आकार ले रहा है जनसांख्यिक बदलाव। दुनिया के कई देशों में अब महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा हो चुकी है। यह अचानक हुआ परिवर्तन नहीं है बल्कि जनसंख्या के बूढ़े होने, पलायन और जीवनशैली में आए बदलावों से धीरे-धीरे विकसित हुई स्थिति है।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामले विभाग तथा विश्व बैंक की 2024 की जनसांख्यिक रिपोर्टों के अनुसार पूर्वी यूरोप, एशिया के कुछ हिस्सों और दक्षिणी अफ्रीका में महिलाओं की संख्या स्पष्ट रूप से अधिक है।
यूरोप में यह अंतर सबसे ज्यादा दिखता है। लातविया, लिथुआनिया और युक्रेन जैसे देशों में हर 100 पुरुषों पर 116 से 118 महिलाएँ मौजूद हैं जो दुनिया में सबसे ऊँचे अनुपातों में गिने जाते हैं।

इसके मूल कारण स्वास्थ्य और इतिहास से जुडे हैं। इन क्षेत्रों में पुरुषों की औसत आयु कम रहती है और कामकाज के लिए युवा पुरुषों का बड़ा हिस्सा बाहर चला जाता है। महिलाएँ प्रायः घर पर ही रहती हैं या उम्र के उत्तरार्ध में लौटती हैं।
रूस और बेलारूस में भी यही प्रवृत्ति दिखाई देती है। उम्रदराज आबादी में महिलाओं की संख्या और तेजी से बढ़ रही है। पश्चिमी यूरोप के पुर्तगाल, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी महिलाएँ आबादी का बड़ा हिस्सा बन गई हैं। वहाँ यह अंतर अपेक्षाकृत कम है, जिसका मुख्य कारण यह है कि महिलाएँ औसतन चार से छह वर्ष अधिक जीवित रहती हैं।
एशिया में नेपाल और हाँगकाँग जैसे स्थानों पर यही पैटर्न दिखता है। नेपाल में भारी संख्या में पुरुष विदेशों में रोजगार के लिए जाते हैं, जिससे घर की कुल आबादी में महिलाओं का अनुपात स्वाभाविक रूप से बड़ा हो जाता है।
