
● जयपुर।
ज्ञान गंगा प्रकाशन की पुस्तक ‘…और यह जीवन समर्पित’ का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने पाथेय कण संस्थान के नारद सभागार में किया। यह कृति राजस्थान के दिवंगत चौबीस प्रचारकों की जीवन यात्राओं का संकलन है।
सरसंघचालक ने कहा कि संघ का आधार स्वयंसेवकों का भाव बल और जीवन बल है। उनके अनुसार हर स्वयंसेवक अपनी मानसिकता से प्रचारक बन जाता है और यही संघ की वास्तविक जीवन शक्ति है। उन्होंने कहा कि समय के साथ सुविधाएं बढ़ी हैं, परन्तु संघ की मूल भावना वही रहनी चाहिए जो कठिन परिस्थितियों के समय थी।
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ को समझने के लिए केवल सुनना पर्याप्त नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव आवश्यक है। अनेक लोगों ने संघ जैसी शाखाएं चलाने का प्रयास किया, परन्तु वे टिक नहीं सकीं, जबकि संघ की शाखाएं सौ वर्ष से निरंतर चल रही हैं। इसका कारण स्वयंसेवकों की निष्ठा और उनके भाव की शक्ति है।
भागवत जी ने कहा कि आज संघ का कार्य समाज की चर्चा और स्नेह का विषय बन चुका है। सौ वर्ष पहले कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि साधारण शाखा भारतीय समाज और राष्ट्र जीवन में इतनी व्यापक भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि संघ की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है और यह स्वयंसेवकों के समर्पित कार्य का परिणाम है।
पुस्तक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ‘…और यह जीवन समर्पित’ केवल गौरव ही नहीं जगाती बल्कि कठिन मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देती है। उन्होंने स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि वरिष्ठ प्रचारकों के तप और तेज को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।
कार्यक्रम की शुरुआत में पुस्तक का परिचय और प्रस्तावना संपादक भागीरथ चौधरी ने प्रस्तुत की। ज्ञान गंगा प्रकाशन समिति के अध्यक्ष डॉ मुरलीधर शर्मा ने आभार व्यक्त किया। समिति के उपाध्यक्ष जगदीश नारायण शर्मा ने अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सरसंघचालक का स्वागत किया।
