
● लंदन
इम्पीरियल कॉलेज लंदन के एक बड़े अध्ययन में 26 हजार से ज्यादा वयस्कों के डेटा का विश्लेषण किया गया। प्रतिभागियों को बुद्धिमत्ता, तर्क, स्मरणशक्ति और सूचना-प्रसंस्करण गति जैसे परीक्षण दिए गए। इसकेनतीजे चौंकाने वाले थे। ‘नाइट आउल’ यानी देर रात तक जागने वाले लोग इन परीक्षणों में ‘अर्ली राइजर’ से बेहतर पाए गए।
जो लोग समय को लेकर न बहुत सुबह वाले हैं, न बहुत रात वाले वे भी सुबह जल्दी उठने वालों से बेहतर प्रदर्शन करते दिखे। लेकिन फायदा सिर्फ दिमागी क्षमता तक ही सीमित है। शोध बताते हैं कि रात में जागने वालों को मेटाबॉलिक समस्याओं, हृदय रोग और यहां तक कि अधिक मृत्यु-जोखिम का खतरा ज्यादा होता है।
शोधों में पाया गया कि ऐसे लोगों में BMI अधिक, शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर ऊंचे, और ‘अच्छा’ HDL कोलेस्ट्रॉल कम होता है। कुछ अध्ययनों ने इंसुलिन रेजिस्टेंस और मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा भी ज्यादा बताया है।

सरल शब्दों में कहें तो दिमाग नाइट आउल का साथ देता है लेकिन सेहत अक्सर साथ नहीं देती। इसके उलट, हालिया शोध बताते हैं कि सुबह जल्दी उठने वालों में BMI कम, कमर पतली, शुगर और ट्राइग्लिसराइड स्तर बेहतर, और HDL ज्यादा पाया गया। यानी दिमागी प्रदर्शन भले कमतर हो पर कुल मिलाकर स्वास्थ्य लाभ ‘अर्ली राइजर’ के पक्ष में रहते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति अपना क्रोनोटाइप (सुबह या रात का स्वभाव) पूरी तरह बदल नहीं सकता। लेकिन नियमित दिनचर्या से इसमें कुछ हद तक सुधार संभव है। शोध यह भी बताते हैं कि अपनी बाडी क्लॉक को समाज की दिनचर्या से मिलाने पर मूड, एकाग्रता, ऊर्जा और मेटाबॉलिक स्वास्थ्य में सुधार आता है।
रात में जागने वाले लोग कुछ क्षेत्रों में तेज साबित होते हैं पर लम्बे समय में सेहत की कीमत चुकानी पड़ सकती है। वहीं सुबह उठने वाले कुछ कम तेज सही पर सेहत के मामले में आगे रहते हैं।
संतुलन यही है अपनी प्राकृतिक लय को समझें और उसी के अनुरूप दिनचर्या ढालें।
