● रथयात्रा से जुड़ी है अनोखी परंपरा
● 27 जून से 5 जुलाई होगी यात्रा

पुरी की जगन्नाथ यात्रा भारत की सबसे पवित्र धार्मिक परंपराओं में से एक है, जो इस वर्ष 27 जून से 5 जुलाई तक आयोजित होगी। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन और इस यात्रा में भाग लेने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस यात्रा का एक दिव्य पक्ष है जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा। यह केवल एक झंडा नहीं बल्कि आस्था, रहस्य और परंपरा का प्रतीक है। मंदिर के शिखर पर हर दिन सूर्यास्त से पहले यह ध्वजा बदली जाती है। मान्यता है कि यदि किसी दिन यह प्रक्रिया नहीं हुई तो मंदिर अठारह वर्षों तक स्वतः बंद हो जाएगा। यह विश्वास है कि भगवान की कृपा और उपस्थिति इसी ध्वजा से आकाश की ओर प्रसारित होती है।
चौंकाने वाली बात यह है कि यह ध्वजा सदैव हवा की दिशा के विपरीत लहराती है, जो अब तक विज्ञान के लिए रहस्य बनी हुई है। समुद्र के पास हवा आमतौर पर समुद्र से भूमि की ओर बहती है, लेकिन पुरी में यह उल्टा है, फिर भी ध्वजा हवा को चुनौती देती है, मानो ईश्वर की सत्ता का संकेत देती हो।
ध्वजा बदलने का दायित्व चोला परिवार पर है, जो बीते 800 वर्षों से यह सेवा बिना किसी सुरक्षा उपकरण के निभा रहा है। यह सेवा श्रद्धा, साहस और समर्पण की मिसाल है।
ध्वजा के प्रति यह परंपरा एक स्वप्न कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान ने सेवकों को स्वप्न में ध्वजा की जीर्णता का संकेत दिया और तभी से प्रतिदिन नई ध्वजा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
यह ध्वजा केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि भगवान की जीवंत उपस्थिति का द्योतक है। इसे बदलना नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर वातावरण में सकारात्मकता और दिव्यता का संचार करता है। यही कारण है कि हर दिन यह ध्वजा न केवल मंदिर को बल्कि पूरे पुरी को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है।