■ सूर्यकांत उपाध्याय

एक वृद्ध माँ रात 11:30 बजे रसोई में बर्तन साफ कर रही है। घर में दो बहुएँ हैं। बर्तनों की आवाज से परेशान होकर वे अपने पतियों से सास को समझाने को कहती हैं।
वे कहती हैं- अपनी माँ को मना करो, इतनी रात को बर्तन धोने से हमारी नींद खराब होती है। सुबह 4 बजे उठकर फिर खटटर-पटटर शुरू कर देती हैं। सुबह 5 बजे पूजा की घंटी…
आरती करके न सुबह सोने देती हैं, न रात को। जाओ, क्या सोच रहे हो-जाकर माँ को मना करो।
बड़ा बेटा उठता है और रसोई की ओर जाता है। रास्ते में छोटे भाई के कमरे से भी वही बातें सुनाई देती हैं, जो उसके अपने कमरे में हो रही थीं। वह छोटे भाई के कमरे को खटखटाता है। छोटा भाई बाहर आता है।
दोनों भाई एक-दूसरे को देखकर मुस्कराते हैं और रसोई में जाकर माँ की बर्तन साफ करने में मदद करने लगते हैं। माँ मना करती है पर वे नहीं मानते।
बर्तन साफ हो जाने के बाद दोनों भाई माँ को बड़े प्यार से उनके कमरे में ले जाते हैं। देखते हैं कि पिताजी रात के 12 बजने पर भी जाग रहे हैं।
दोनों भाई माँ को बिस्तर पर बैठाकर कहते हैं, माँ, सुबह जल्दी उठा देना। हमें भी पूजा करनी है और पिताजी के साथ योग भी करना है।
माँ बोली, ‘ठीक है बच्चों।’
दोनों बेटे सुबह जल्दी उठने लगे। अगली रात दोनों भाई 9:30 बजे ही बर्तन मांजने लगे।’
पत्नियाँ बोलीं, ‘माता जी काम करती तो हैं, आप क्यों कर रहे हैं बर्तन साफ? इस पर बेटे बोले, ‘हमने शादी इसलिए भी की थी कि माँ की सहायता हो जाए। पर जब तुम लोग यह काम नहीं करतीं तो कोई बात नहीं, हम अपनी माँ की सहायता कर देते हैं।’
बेटों ने कहा, ‘हमारी अपनी माँ है, इसमें क्या बुराई है?’ अगले तीन दिनों में घर का पूरा माहौल बदल गया। बहुएँ जल्दी-जल्दी बर्तन साफ करने लगीं क्योंकि नहीं तो उनके पति बर्तन धोने लगते।
तीन दिन बाद दोनों बहुएँ भी पतियों के साथ सुबह उठने लगीं और पूजा-आरती में शामिल होने लगीं।
कुछ ही दिनों में पूरे घर का वातावरण बदल गया। बहुएँ सास-ससुर को पूरा सम्मान देने लगीं।
