■ सूर्यकांत उपाध्याय

एक समय की बात है, एक गाँव में एक महान ऋषि रहते थे। लोग अपनी कठिनाइयाँ लेकर उनके पास आते थे और ऋषि उनका मार्गदर्शन करते थे।
एक दिन एक व्यक्ति ऋषि के पास आया और बोला, “गुरुदेव, मैं यह जानना चाहता हूँ कि हमेशा खुश रहने का राज क्या है?”
ऋषि ने उससे कहा, “तुम मेरे साथ जंगल चलो, मैं तुम्हें खुश रहने का राज बताता हूँ।”
इतना कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की ओर चल पड़े। रास्ते में ऋषि ने एक बड़ा-सा पत्थर उठाया और उसे उस व्यक्ति को देते हुए कहा,“इसे पकड़े रहो और चलते रहो।”
वह व्यक्ति पत्थर उठाकर ऋषि के साथ आगे बढ़ने लगा।
कुछ समय बाद उसके हाथ में दर्द होने लगा पर वह चुपचाप चलता रहा। जब काफी देर बीत गई और दर्द असहनीय हो गया तो उसने ऋषि से कहा कि अब वह इसे सह नहीं पा रहा।
तब ऋषि ने कहा, “इसे नीचे रख दो।” पत्थर नीचे रखते ही उसे बड़ी राहत महसूस हुई।
तभी ऋषि बोले, “यही है खुश रहने का राज़।”
व्यक्ति बोला,ब“गुरुवर, मैं समझा नहीं।”
ऋषि ने समझाया, “जिस तरह एक मिनट तक पत्थर पकड़े रहने पर थोड़ा दर्द होता है, एक घंटे तक पकड़े रहने पर अधिक दर्द होता है, और लंबे समय तक पकड़े रहने पर दर्द असहनीय हो जाता है, उसी प्रकार दुखों का बोझ भी है।
जितनी देर हम उसे पकड़े रखेंगे, उतने ही हम दुखी और निराश होते जाएंगे। यह हम पर निर्भर है कि दुख रूपी पत्थर को हम एक मिनट तक उठाए रखते हैं या पूरी जिंदगी।
यदि तुम खुश रहना चाहते हो तो दुख रूपी पत्थर को जितनी जल्दी हो सके नीचे रखना सीखो और हो सके तो उसे उठाओ ही मत।”
