■ दमघोंटू सच्चाई को समझना आवश्यक

● हिमांशु राज़
दिल्ली की सर्दियों का अपना अलग आकर्षण है। सुबह की धुंध, ठंडी हवा की सिहरन और कोहरे में लिपटी सड़कें। लेकिन इस खूबसूरत नजारे के पीछे एक ऐसा खतरा छिपा है, जो हर सांस के साथ शरीर में उतर रहा है। सर्दियां राजधानी में केवल ठंड नहीं लातीं, हवा में घुला जहर भी बढ़ा देती हैं। जैसे ही तापमान गिरता है, प्रदूषण के स्तर बढ़ने लगते हैं और दिल्ली का आसमान धुएं की परतों से ढक जाता है।
सर्दियों में तापमान गिरने पर वातावरण में इनवर्शन इफेक्ट नामक स्थिति बनती है। इसमें ठंडी हवा ऊपर की गर्म परत के नीचे फंस जाती है, जिससे प्रदूषक कण जमीन के पास ही रह जाते हैं और फैल नहीं पाते। यही कारण है कि इस मौसम में हवा भारी और दमघोंटू महसूस होती है। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई बार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच जाता है। यह सामान्य व्यक्ति के लिए भी खतरनाक है, जबकि बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए तो बेहद जोखिम भरा साबित होता है।
प्रदूषण के कई स्रोत हैं, परंतु वाहन और उनके धुएं का योगदान सबसे अधिक है। राजधानी की सड़कों पर बढ़ती गाड़ियों की संख्या और डीजल-पेट्रोल की खपत हवा में सूक्ष्म कणों का स्तर बढ़ा देती है। इसके अलावा निर्माण स्थलों से उड़ती धूल, सड़क मरम्मत कार्य और खुले में फैली मिट्टी भी प्रदूषण बढ़ाती है। आसपास के राज्यों विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की प्रथा दिल्ली की हवा को और भी जहरीला कर देती है।
घरेलू स्तर पर भी प्रदूषण बढ़ता है। सर्दी से बचने के लिए लकड़ी, कोयला या पुराने टायर जलाने से निकलने वाला धुआं हवा को और खराब बना देता है। छोटे उद्योगों में पारंपरिक ईंधन के उपयोग से भी कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है। इस स्थिति में दिल्ली और आसपास के क्षेत्र एक विशाल गैस-चैंबर जैसे प्रतीत होते हैं, जहां हर सांस लेना चुनौती बन गया है।

स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव बेहद चिंताजनक है। हवा में मौजूद महीन कण फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर सांस संबंधी रोग पैदा करते हैं। अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, खांसी और सीने में जकड़न की समस्याएं सर्दियों में आम हो जाती हैं। लंबे समय में यह प्रदूषण हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक और मानसिक तनाव जैसी परिस्थितियों को जन्म देता है। बच्चे, बुजुर्ग, पक्षी, पालतू जानवर और पौधे सभी इस जहरीली हवा से प्रभावित होते हैं।
दिल्ली की हवा को स्वच्छ रखने के लिए केवल सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं; समाज की सामूहिक भागीदारी जरूरी है। नागरिक सरल कदम अपनाकर इसमें मदद कर सकते हैं जैसे एयर प्यूरीफायर का उपयोग, मास्क पहनना, अनावश्यक वाहन चलाने से बचना, कारपूलिंग और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना। इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग और वाहनों की नियमित जांच भी प्रभावी उपाय हैं। निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव और सामग्री को ढककर रखना अनिवार्य किया जाना चाहिए। किसानों को पराली जलाने के विकल्प उपलब्ध कराना भी महत्वपूर्ण है।
सरकार का ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) वायु गुणवत्ता के अनुसार चरणबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करता है जैसे निर्माण कार्यों पर रोक, स्कूलों में अवकाश, वाणिज्यिक वाहनों पर सीमाएं और औद्योगिक उत्सर्जन का नियंत्रण। हालांकि, दीर्घकालिक नीतिगत सुधार और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है।
दिल्ली की सर्दियां अब सिर्फ ठंड का प्रतीक नहीं रहीं; यह चेतावनी भी हैं कि यदि प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा। यह केवल सरकार या पर्यावरण कार्यकर्ताओं का विषय नहीं बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। जब लोग अपने हिस्से का योगदान देंगे, प्रदूषण कम करेंगे, पेड़ लगाएंगे और जागरूकता फैलाएंगे तभी दिल्ली की हवा एक बार फिर जीवनदायी बन सकेगी।
