● सूर्यकांत उपाध्याय

एक लालची आदमी ने संतों की सेवा केवल धन पाने की नीयत से शुरू की। प्रसन्न होकर एक संत ने उसे चार चमत्कारी दीये दिए और कहा, ‘पहले तीन दीयों को क्रमशः पूरब, पश्चिम और दक्षिण दिशा में ले जाकर जहां दीया बुझ जाए वहां खुदाई करने पर धन मिलेगा। लेकिन संत ने चौथा दीया जलाने से मना किया और विशेष रूप से उत्तर दिशा में ले जाने से रोका।
लालची व्यक्ति ने एक-एक करके तीनों दिशाओं में दीये जलाकर अपार धन प्राप्त किया। परंतु लालची को संतोष कहां! उसे लगा कि जब तीनों दिशाओं में इतना धन मिला है तो उत्तर दिशा में इससे भी अधिक होगा। वह संत की चेतावनी को नजरअंदाज कर उत्तर दिशा की ओर बढ़ गया।
वहां एक भव्य महल मिला, जिसमें अनगिनत खजाने थे। परंतु एक कमरे में एक बूढ़ा चक्की चला रहा था। पूछने पर उसने चक्की लालची से चलवाकर हंसते हुए कहा, ‘अब यह महल तेरा है पर जब तक चक्की चलेगी तभी तक टिकेगा। जैसे मेरी सारी उम्र लालच में इसी चक्की को चलाते बीती, अब तू भी फंस गया।’
लालची आदमी रोने लगा, ‘इससे छुटकारा कैसे मिलेगा?’
बूढ़ा बोला, ‘जब कोई और लालच में अंधा होकर यहां आएगा, तब तू मुक्त होगा।’
महल में कैद वह आदमी अब हर आने वाले को बस एक बात बताता है ‘लालच बुरी बला है!’