● सूर्यकांत उपाध्याय

एक हरे-भरे मैदान के बीचोंबीच एक विशाल और घमंडी पेड़ खड़ा था। वह खुद को मैदान का राजा समझता था और नीचे उगने वाले छोटे पौधों, तिनकों को तुच्छ मानता था।
एक दिन भयंकर तूफान आया। पक्षी उड़ गए, छोटे पौधे ज़मीन से लिपट गए। तभी एक छोटा तिनका कांपता हुआ पेड़ के पास आया और बोला, ‘हे महान पेड़! मुझे अपनी जड़ों के पास थोड़ी शरण दे दो।’
पेड़ ने अहंकार से जवाब दिया, ‘दूर हो जा! तू मेरे गौरव को ठेस पहुंचाएगा।’
अपमानित तिनका पास की एक चट्टान की दरार में छिप गया और बच गया।
थोड़ी ही देर में तूफान ने ज़ोर पकड़ा। तेज़ हवाओं और बारिश में वह विशाल पेड़ ज़मीन से उखड़ गया। उसकी सारी शान मिट्टी में मिल गई। तूफान थमने के बाद वह छोटा तिनका सुरक्षित बाहर निकल आया।
सीख:
अहंकार चाहे जितना ऊंचा हो, समय के सामने टिक नहीं सकता।
विनम्रता, विवेक और सहनशीलता ही सच्ची ताकत है। कभी किसी को छोटा मत समझो क्योंकि छोटे कभी-कभी बड़ी सीख दे जाते हैं।