
● गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर विशेष लेख
उत्तर भारत की संत परंपरा में जब भी भक्ति, साहित्य और राम नाम की बात होती है तो गोस्वामी तुलसीदास का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। वे एक ऐसे साधक-कवि थे, जिनकी लेखनी से न केवल काव्य फूटा अपितु जनमानस के हृदय में श्रीराम और गहरे बस गए।
पीड़ा ले गई प्रभु की ओर
तुलसीदास का जन्म चित्रकूट के पास राजापुर ग्राम में हुआ। लेकिन उनकी माता तुरंत चल बसीं। बचपन में ही अनाथ हो जाने वाले तुलसीदास का पालन-पोषण एक साधु ने किया। बचपन में उन्हें रामबोला कहा जाता था क्योंकि ‘राम’ नाम ही उनके मुख से प्रथम निकला।
बाल्यावस्था में ही उन्हें भिक्षाटन करना पड़ा। परंतु जीवन की इस कठिन शुरुआत ने उन्हें तोड़ा नहीं बल्कि राम में और दृढ़ कर दिया। यह पीड़ा आगे चलकर उनकी कविता में करुणा, संवेदना और प्रेम बनकर प्रकट हुई।
पत्नी के वचन से जीवन में मोड़
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नामक स्त्री से हुआ। वे अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे। एक दिन रत्नावली के मायके चले जाने पर वे रात के अंधकार में नदी पार कर उनसे मिलने पहुंचे। इसपर रत्नावली ने उनसे अपने बदले प्रभु श्रीराम के चरणों में प्रीति लगाने को कहा। इस वाक्य ने तुलसीदास के जीवन की दिशा ही बदल दी। उसी क्षण उन्होंने सांसारिक मोह त्याग दिया और प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन हो गए।
रामचरितमानस: जन-जन की रामकथा
तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना वाराणसी में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित असीघाट पर की। कहते हैं, जब उन्होंने इसकी रचना प्रारंभ की तो रात्रि में उनके लिखे दोहे और चौपाइयां अपने आप स्वर्णाक्षरों में दीवारों पर अंकित हो जाती थीं। इस दिव्यता ने समाज को चकित कर दिया रामचरितमानस केवल एक ग्रंथ नहीं, अपितु लोकमानस की आत्मा है। अवधी भाषा में रचित यह महाकाव्य श्रीराम के जीवन और मर्यादा की सरल, सरस और भावपूर्ण व्याख्या करता है।

जब भक्ति फली, हनुमान जी से भेंट
मान्यता है कि तुलसीदास जी को कई बार श्रीहनुमान और श्रीराम के दर्शन हुए। एक दिन वे हनुमान जी से मिले और श्रीराम के दर्शन की प्रार्थना की। हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट में राम दर्शन का संकेत दिया। वहां तुलसीदास को प्रभु राम के साक्षात दर्शन हुए। यह अनुभव उनके जीवन की सिद्धि बन गया।
गोस्वामी तुलसीदास भले ही 1623 ई. में देहत्याग कर गए हों पर वे आज भी रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका और अपनी अन्य रचनाओं के माध्यम से जनमानस में जीवित हैं।