■ अभय मिश्र

भारत में शहरों और कस्बों के नामों के साथ ‘पुर’, ‘बाद’ और ‘गंज’ जैसे प्रत्यय जुड़ने की परंपरा न केवल भाषाई और सांस्कृतिक है प्रत्युत ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से भी जुड़ी हुई है।
इन तीनों प्रत्ययों की व्युत्पत्ति, उनका उपयोग और कुछ प्रमुख उदाहरण देखिए- ‘पुर’ संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘नगर’, ‘गांव’, ‘दुर्ग’ या ‘निवास स्थान’। यह प्राचीन भारतीय परंपरा में नगरों और बस्तियों को दर्शाने के लिए प्रयोग होता था।
वैदिक काल से ही ‘पुर’ का प्रयोग नगरों के लिए होता आया है। रामायण और महाभारत में भी ‘अयोध्या-पुर’ (पुरी), ‘द्वारका-पुर’ (पुरी) जैसे उदाहरण मिलते हैं। यह आमतौर पर किसी राजा, योद्धा या संस्थापक के नाम से जुड़ता था।
नगर का नाम अर्थ व नामकरण के कारण को समझिए। जैसे-जयपुर जय सिंह द्वारा बसाया गया नगर। नागपुर नागों की भूमि या नाग नदी के किनारे बसा है। कानपुर को संभवतः कर्णपुर (कर्ण की नगरी) से उत्पत्ति को जोड़ा जाता है। सागरपुर सागर (झील या समुद्र) के निकट बसा हुआ नगर।
इसी प्रकार ‘बाद’ जुड़ने के कई कारण हैं। इसकी व्युत्पत्ति और अर्थ को समझिए। दरअसल ‘बाद’ फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है ‘नगर’ या ‘स्थल’। यह आमतौर पर मुस्लिम शासनकाल (विशेषकर मुगल या तुर्की शासन) में बसे शहरों के नामों में जुड़ा मिलता है। दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के समय फारसी राजभाषा थी। नए नगर बसाने या पुराने स्थानों का नाम बदलने के दौरान शासकों ने ‘बाद’ प्रत्यय जोड़ा। जैसे- अहमदाबाद सुल्तान अहमद शाह द्वारा बसाया गया। हैदराबाद हैदर (अली) के नाम पर, फैजाबाद, फैज का अर्थ है कृपा और शाहबाद किसी शाह (राजा) के नाम पर बसा नगर कहा जाता है।
अब ‘गंज’ को विस्तार से समझते हैं। ‘गंज’ भी मूलतः फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘बाजार’, ‘व्यापारिक केंद्र’ या ‘गोदाम’। यह प्रत्यय आमतौर पर उन स्थानों के लिए प्रयोग होता था जो व्यापार, बाजार या भंडारण के केंद्र रहे हों।
मुगल और ब्रिटिश काल दोनों में व्यापारिक केंद्रों की स्थापना के समय ‘गंज’ जोड़ा गया। ‘गंज’ का प्रयोग हिंदू और मुस्लिम दोनों शासनों में मिला-जुला रहा। उदाहरण के तौर पर बदरगंज, बदर नामक व्यापारी या अधिकारी द्वारा बसाया गया बाजार। सुल्तानगंज, सुल्तान द्वारा स्थापित व्यापारिक क्षेत्र रहा। बेगमगंज किसी बेगम (रानी) के संरक्षण में बना बाजार कहा गया और पटेलगंज को पटेल समुदाय या नेता के नाम से जोड़ा गया होगा।
‘पुर’, ‘बाद’ और ‘गंज’ जैसे प्रत्ययों से केवल स्थानों के नाम ही नहीं बनते बल्कि ये उस स्थान की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को भी दर्शाते हैं। नामकरण की ये परंपराएं भारत की बहुलतावादी और बहुसांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं।