● सुविधा के बदले दिमागी ताकत खो रहे हैं लोग, अध्ययन में चेतावनी

मुंबई।
जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बढ़ती निर्भरता हमारी सोचने-समझने की क्षमता को धीरे-धीरे कमजोर कर रही है। यह खुलासा माइक्रोसॉफ्ट और कैरनेज मेलोन यूनिवर्सिटी के संयुक्त अध्ययन में हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि हम रोजमर्रा के निर्णय और समस्या-समाधान का काम एआई को सौंपते रहेंगे तो हमारी आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
अध्ययन में 319 ज्ञान-कर्मियों जिनमें कोडर, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य पेशेवर शामिल थे, से बातचीत की गई। उन्होंने कुल 936 वास्तविक कार्य-स्थितियों में एआई के उपयोग के उदाहरण साझा किए। निष्कर्षों के अनुसार, जो लोग एआई के सुझावों को बिना जांच-परख के स्वीकार करते हैं, वे कम आलोचनात्मक सोच का प्रदर्शन करते हैं। वहीं, जो लोग एआई के आउटपुट पर संदेह रखते हुए उसे परखते हैं, वे अधिक मानसिक रूप से सक्रिय और गहराई से सोचने वाले पाए गए।

शोध में यह भी पाया गया कि एआई के अधिक प्रयोग से कार्य-प्रक्रिया का स्वरूप बदल रहा है। लोग अब सीधे समस्या-समाधान के बजाय जानकारी की पुष्टि और परिणामों की निगरानी में अधिक समय बिताते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे निर्णय-क्षमता का अभ्यास घटने का खतरा है और लंबे समय में यह मानसिक मांसपेशियों के क्षय जैसा असर डाल सकता है।
अध्ययन में रचनात्मकता पर भी गिरावट दर्ज की गई। एआई पर निर्भर कार्यकर्ताओं के परिणाम अधिक एकरूप और कम विविधता वाले पाए गए जबकि एआई का सीमित उपयोग करने वालों ने अधिक मौलिक और अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए।
विशेषज्ञों का मानना है कि एआई का संतुलित और सतर्क उपयोग ही इसका सही लाभ देगा। अन्यथा, सुविधा की दौड़ में हम अपनी बौद्धिक ताकत खो सकते हैं।