● सूर्यकांत उपाध्याय

एक सम्राट परमात्मा की खोज में एक फकीर के पास पहुँचा। फकीर ने कहा “अगर सच में परमात्मा को पाना है तो मेरे साथ रह और मेरी शिक्षा ले।”
अगले दिन से फकीर ने उसे अजीब अभ्यास शुरू करवाया। दिन में किसी भी समय, जब वह खा रहा हो, काम कर रहा हो या आराम कर रहा हो, लकड़ी की तलवार से अचानक हमला करना। तीन महीने में सम्राट ने सीखा कि चौबीसों घंटे सजग रहने से विचार और अहंकार धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं।
दूसरे चरण में, हमले रात की नींद में होने लगे। पहले तो यह कठिन लगा लेकिन समय के साथ वह नींद में भी सजग हो गया। सपने खत्म हो गए और गहरी, शांत नींद आने लगी। उसने जाना कि सजगता केवल जागते समय ही नहीं बल्कि नींद में भी संभव है।
तीसरे चरण में, असली तलवार से हमले शुरू हुए। अब उसकी जागरूकता इतनी प्रखर हो चुकी थी कि तीन महीने में एक भी चोट नहीं लगी। उसका मन शांत झील की तरह हो गया बिना लहर, बिना अहंकार, बिना अनावश्यक विचारों के।
एक दिन सम्राट ने सोचा कि गुरु पर पीछे से हमला करके देखे, क्या वे भी उतने ही सावधान हैं। लेकिन जैसे ही उसने सोचा, गुरु ने दूर से आवाज दी “ऐसा मत करना, मैं बूढ़ा हूँ।” वह चकित रह गया।
गुरु ने बताया कि वजब चित्त पूरी तरह मौन और सजग हो जाता है, तब दूसरों के विचार भी सुनाई देने लगते हैं और उसी सजगता में अदृश्य परमात्मा की अनुभूति होती है, वह हर जगह, हर कण में दिखने लगता है।
कहानी यहीं समाप्त होती है, लेकिन संदेश यही है कि यदि आप सतत जागने का अभ्यास करने को तैयार हैं तो परमात्मा स्वयं आपके द्वार आ जाएगा। कदम छोटा हो या बड़ा, हर कदम आपको अनंत की ओर ले जाता है। जागरूकता और निरंतर सावधानी से मनुष्य परमात्मा तक की यात्रा पूरी कर सकता है।