● सूर्यकांत उपाध्याय

एक समय की बात है। एक गुरु के दो शिष्य थे। एक का नाम गोरा राम और दूसरे का नाम काला राम। गुरु जी का अधिक लगाव काला राम के साथ था और वे उसे ज़्यादा अहमियत देते थे।
एक दिन एक व्यक्ति ने गुरु जी से पूछा, ‘गुरु जी, आप गोरे की तुलना में काले को अधिक तवज्जो क्यों देते हैं? जबकि गोरा तो सुबह-शाम पाठ-पूजा करता है, रोज़ रामायण पढ़ता है और डेरे में खूब सेवा भी करता है।’
गुरु जी ने उत्तर दिया, ‘कल सुबह आप हमारे डेरे में एक ऊँट लेकर आइएगा, तब मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूँगा।’
दूसरे दिन वह व्यक्ति एक ऊँट लेकर डेरे पहुँच गया और बोला, ‘लीजिए हुज़ूर, मैं ऊँट ले आया हूँ।’
गुरु जी ने गोरा राम को आवाज़ दी और कहा, ‘गोरा राम, इस ऊँट को छत पर चढ़ा दो।’
गोरा राम ने तुरंत कहा, ‘यह कैसे संभव है? यह ऊँट बहुत बड़ा है और मुझमें इतनी शक्ति नहीं है कि मैं इसे उठा सकूँ।’
गुरु जी ने कहा, ‘ठीक है, आप जाइए और अपना काम कीजिए।’
थोड़ी देर बाद गुरु जी ने काला राम को बुलाया और कहा, ‘काला राम, इस ऊँट को ज़रा छत पर चढ़ा दो।’
काला राम ने बिना कोई प्रश्न किए ऊँट की टाँगों में अपना सिर फँसा लिया और अपने कंधों से ऊँट को उठाने का भरसक प्रयास करने लगा।
यह देखकर गुरु जी ने उस व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा, ‘यही आपके प्रश्न का उत्तर है। सच्चा शिष्य वही है जो तन से नहीं, मन से जुड़ा हो। जो अपने सतगुरु के आदेश की परख न करे। संत मार्ग में बुद्धि से काम नहीं चलता, वहाँ तो ‘बुद्धू’ बनना पड़ता है।’