
मुंबई।
‘भोग पदार्थों से हमें केवल अल्पानुभूति ही मिलती है और हम जीवनभर उसी में लगे रहते हैं। हमारा लक्ष्य पूर्णानुभूति पाने के लिए होना चाहिए। हम एकबार भरपेट खा लेते हैं तो कुछ समय के लिए संतुष्टि मिल जाती है। पर कुछ समय बाद फिर भूख सताने लगती है। भोजन से अल्पानुभूति होती है। हमें पूर्णानुभूति भी होनी चाहिए और वह केवल ज्ञान से ही मिलती है। ज्ञान में भी हमें आत्मज्ञान पाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। जब आत्मज्ञान हो जाएगा तब अपने भीतर के ब्र्म्ह को हम समझ पाएंगे। इसी से भौतिक वस्तुओं की चाह समाप्त होगी और ईश्वर से साक्षात्कार होगा।’ यह प्रेरणात्मक संदेश यहां मुंबई में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को दिया है।
गुरु पूर्णिमा से आरंभ हुआ महाराजश्री का दिव्य-भव्य चातुर्मास्य व्रत महामहोत्सव यहां बोरीवली के कोराकेंद्र ग्राउंड पर चल रहा है। यह सात सितंबर को पूर्ण होगा।

मुंबई की धरती पर बद्रीनाथ धाम के स्वरूप में सुसज्जित परिसर में महाराजश्री पांच सत्रों में महापूजन, 33 कोटी गौप्रतिष्ठा महायज्ञ, रुद्राभिषेक व अन्य अनेक धार्मिक अनुष्ठान करवा रहे हैं। बुधवार और गुरुवार को उन्होंने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों तथा देश के अन्य क्षेत्रों से पधारे हुए गौसेवकों व गौसंस्था के प्रतिनिधियों का सत्कार करवाया और उन्हें मंचपर बुलाकर आशीर्वाद दिया। गौसेवा के अपने संकल्प को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि जब तक पूरे भारतवर्ष में गौमाता को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया जाएगा वह अपना राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर सनातन संस्कृति की रक्षा के अपने दायित्व से एक कदम.भी पीछे नहीं हटेंगे।