● आत्मन मिश्र

सकारात्मकता और कृतज्ञता से भरे वातावरण में आज देशभर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन केवल औपचारिकता नहीं बल्कि समाज निर्माण के उन पुरोधाओं को नमन करने का अवसर है, जिनके ज्ञान और संस्कार से पीढ़ियां दिशा पाती हैं।
डॉ. राधाकृष्णन का आदर्श
5 सितंबर को हम भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मनाते हैं। उन्होंने स्वयं कहा था, ‘यदि आप मुझे सम्मान देना चाहते हैं तो उसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाएं।’ यह कथन ही दर्शाता है कि उनके लिए शिक्षक होना, राष्ट्रपति होने से भी बड़ा गौरव था।
गुरु परंपरा : संस्कृति की आत्मा
भारतीय परंपरा में गुरु को सृष्टि के सृजनकर्ता के समकक्ष माना गया है। ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े’ जैसी पंक्तियां इस बात का प्रमाण हैं कि समाज में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। शिक्षक केवल पाठ नहीं पढ़ाते, वे चरित्र गढ़ते हैं और राष्ट्र की नींव मजबूत करते हैं।
आधुनिक समय में शिक्षक की भूमिका
आज जबकि शिक्षा डिजिटल प्लेटफॉर्म तक सीमित होती जा रही है, तब भी शिक्षक की भूमिका कम नहीं हुई है। वे सिर्फ जानकारी नहीं देते बल्कि बच्चों के भीतर मानवीय मूल्यों, संवेदनशीलता और सामाजिक चेतना का संचार करते हैं। यही कारण है कि शिक्षक आज भी मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत और जीवन निर्माता बने हुए हैं।
समाज का आभार
शिक्षक दिवस हमें यह याद दिलाता है कि राष्ट्र के विकास का श्रेय केवल नीतियों और योजनाओं को ही नहीं, उन शिक्षकों को भी जाता है, जो भविष्य के नागरिकों को गढ़ते हैं। देशभर में आज विद्यालयों और महाविद्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों में छात्र-छात्राएं अपने शिक्षकों को सम्मानित कर कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हैं।
समाज का वास्तविक परिवर्तन शिक्षक की कक्षा से ही प्रारंभ होता है। यदि शिक्षक सम्मानित, सुरक्षित और प्रेरित होंगे तो उनके विद्यार्थी भी उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे।