
प्रतापगढ़।
प्रतापगढ़ की मिट्टी से निकला वह युवा, जिसने अपने शब्दों से सपनों को आकार दिया और साहित्य के आकाश में नक्षत्र बनकर चमक उठा, वही हैं अर्पित सर्वेश। विश्व साहित्य के पटल पर भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले इस विलक्षण प्रतिभा के धनी लेखक को उनके अद्वितीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित साहित्य प्रज्ञा सम्मान से अलंकृत किया गया।
यह सम्मान उन रचनाकारों को समर्पित है जो परंपरा के साथ-साथ नव्यता की राह खोलते हैं। अर्पित सर्वेश ने सिद्ध कर दिया है कि साहित्य केवल किताबों तक सीमित नहीं है बल्कि यह विचारों की वह ऊर्जा है, जो पीढ़ियों को प्रेरणा देती है और सभ्यता की धारा को आगे बढ़ाती है।
कम उम्र में ही 27 पुस्तकों का लेखन और 200 से अधिक कविताओं का प्रकाशन, यह केवल आँकड़े नहीं हैं बल्कि उनकी अथक साधना और सृजनशीलता का प्रमाण हैं। उनकी कविताएँ कभी मन की गहराइयों में उतर जाती हैं तो कभी सामाजिक चेतना को झकझोर देती हैं।
अर्पित सर्वेश ने साहित्य के इतिहास में तीन विश्व रिकॉर्ड दर्ज कर एक अमिट छाप छोड़ी है। इनमें एक ही दिन में 15 विदेशी भाषाओं में पुस्तक प्रकाशित करना तो साहित्यिक प्रयोगों की पराकाष्ठा माना जाता है। वहीं कुर्दिश भाषा में पुस्तक प्रकाशित करने वाले पहले भारतीय लेखक बनने का गौरव भी उन्होंने अर्जित किया है।
उनकी उपलब्धियाँ केवल पुरस्कारों तक सीमित नहीं हैं। इंटरनेशनल आइकन अवॉर्ड, ब्रह्मर्षि सम्मान, डॉ. बी.आर. अंबेडकर राष्ट्रीय सम्मान, ग्लोबल आइकन इंडिया अवॉर्ड जैसे अनेकों अलंकरण उनके साहित्यिक सफर की गवाही देते हैं।
सम्मान ग्रहण करने के अवसर पर अर्पित सर्वेश ने कहा, ‘यह सम्मान केवल मेरा नहीं है बल्कि पूरे प्रतापगढ़ और भारत की उस युवा पीढ़ी का है, जो कलम की ताक़त से समाज को नई दिशा देने का सपना देख रही है।’