
रामायण का एक बड़ा ही रोचक प्रसंग याद आता है, जब रावण ने हनुमान जी को रोकने के लिए छल का सहारा लिया और एक राक्षस को साधु के वेश में भेजा। उस असुर का नाम कालनेमि था, जो रावण के मामा मारीच का पुत्र था। रामायण के युद्ध में लक्ष्मण के मूर्छित होने पर जब सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी लाने की बात कही तो रावण ने कालनेमि को हनुमान का रास्ता रोकने का काम सौंपा। कालनेमि ने मायावी साधु का वेश धारण किया किंतु हनुमान जी उसकी माया को पहचानकर उसका वध कर दिया।
इसी कथा से प्रेरणा लेकर उत्तराखंड पुलिस ने अपने विशेष अभियान का नाम ‘ऑपरेशन कालनेमि’ रखा है। इस अभियान का उद्देश्य लोगों की आस्था की रक्षा करना और छद्म वेशधारियों की पहचान करना है। अब तक इसमें लगभग 300 से अधिक नकली साधु और मौलाना पकड़े जा चुके हैं।
बचपन से ही लोग सुनते आए हैं कि साधु के भेष में बच्चा-चोर गिरोह सक्रिय रहते थे। ये गिरोह मौका पाकर मासूम बच्चों का अपहरण कर लेते थे। आज भी झुग्गी-झोपड़ी और गरीब बस्तियों में ऐसे समाचार मिलते रहते हैं। सवाल यह है कि आखिर साधु का ही भेष क्यों धरा जाता है? इसका कारण स्पष्ट है, साधु हिंदू समाज का वह घटक है, जिस पर सहज ही श्रद्धा और विश्वास किया जाता है। इसी भरोसे का फायदा उठाकर छद्म साधु लोग छल-कपट और झूठे दावों से आस्था का शोषण करते हैं। रामायण का गूढ़ संदेश यही है कि रावण का वध केवल सीता हरण के कारण नहीं हुआ बल्कि इसीलिए भी हुआ कि उसने एक साधु का वेश धरकर यह महापाप किया था। सनातन धर्म में इसे अक्षम्य अपराध माना गया है।

हाल ही में गाजियाबाद में अफसर और नावेद नामक दो लोगों को गिरफ्तार किया गया, जो मासूम बच्चों के अपहरण में शामिल थे। गोरे बच्चों को ऊँचे दामों पर बेच दिया जाता था, जबकि साँवले बच्चों को या तो अपाहिज बनाकर भीख मँगवाई जाती थी या चोरी-चकारी सिखाकर अपराध में धकेला जाता था। पिछले वर्षों में देहरादून, जमशेदपुर, कोचीन, चेन्नई, पश्चिम बंगाल और मंदसौर से भी कई छद्म मौलाना पकड़े गए हैं, जो मासूम बच्चों को बहला-फुसलाकर आतंकवाद की राह पर मोड़ते थे।
मुंबई, फतेहपुर, कानपुर, इलाहाबाद जैसे शहरों में भी कई नकली मौलाना और साधु पकड़े गए, जो धार्मिक संस्थानों के नाम पर चंदा वसूलते थे जबकि हकीकत में वहाँ कोई मदरसा या मस्जिद थी ही नहीं। हाल ही में दिल्ली और कोलकाता में भी छद्मवेश साधु पकड़े गए।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कालनेमि के भेषधारी सिर्फ मुस्लिम समुदाय से ही नहीं बल्कि हिंदू, ईसाई और सिख समुदाय से भी पकड़े गए हैं। इससे सिद्ध होता है कि कालनेमियों का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि कालनेमि राक्षस था और राक्षसों का कोई मजहब नहीं होता।
आज समाज में असली साधुओं और छद्म वेशधारियों के बीच अंतर करना पुलिस और प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। बहुत से लोग केवल आस्था के कारण भगवा पहन लेते हैं, कुछ उम्रदराज लोग संन्यास धारण कर लेते हैं किंतु इस आड़ में छल-कपट करने वाले ही समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
