■ अभय मिश्र

हिंदी हमारी संस्कृति, संवेदना और संस्कार की भाषा है। हिंदी भारत के भाल पर लगी वो भभूत है जिसे पढ़कर गोरखनाथ प्रकट कर दिए जाते हैं। संत नामदेव जब उत्तर भारत जाते हैं तो हिंदी में पद रचते हैं ‘काहे रे बन खोजन जाई, सर्व निवासी सदा उदासी, तिही संग समाई।’ तात्विक चिंतन कर कबीरदास जी हिंदी में दोहे रच कर अमर हो जाते हैं। अमीर खुसरो लिखते हैं ‘सांझ भई घर आओ, सजन मोरे’। भक्तिकाल से लेकर आधुनिक युग तक हिंदी साहित्य ने सदैव भारतीय चेतना को दिशा दी। तुलसी, सूर, कबीर, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और निराला जैसे कई रचनाकारों ने हिंदी को लोकभाषा का दर्जा दिलाया। स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंदी ने जनजागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया।
भविष्य की ओर दृष्टि डालें तो आज हिंदी केवल भारत की भाषा नहीं अपितु वैश्विक पहचान का माध्यम बन चुकी है। डिजिटल युग ने हिंदी को नए आयाम दिए हैं; सोशल मीडिया, समाचार पोर्टल, ब्लॉग और ऑनलाइन शिक्षा ने इसकी पहुंच करोड़ों लोगों तक कर दी है। विश्व के अनेक देशों में हिंदी, पाठ्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से नए आयाम पा रही है।

आज आवश्यकता है कि हम हिंदी के तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यावसायिक स्वरूप को और मजबूत करें। यदि हम अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हुए इसे आधुनिकता से जोड़ें तो आने वाला समय हिंदी का स्वर्णिम युग सिद्ध होगा। उस स्वर्णिम युग के लिए ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी में पहला भाषण देकर भारत का मान बढ़ाया था। 2003 में प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्होंने हिंदी में ही भाषण दिया। उनके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014, 2019 और 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया।
इन सबके बावजूद हिंदी की आवश्यकता और महत्ता बताने के लिए कई कदम उठाने शेष हैं। संयुक्त राष्ट्र में कुल 6 आधिकारिक भाषाएं मान्य हैं- अंग्रेज़ी, फ्रेंच, अरबी, रूसी, स्पेनिश और चीनी। हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में शामिल होने के बावजूद अभी तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। भारत सरकार लंबे समय से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के प्रयास कर रही है। इसके लिए कई देशों से समर्थन भी मिला है। यदि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिल जाता है तो यह न केवल भारतीय संस्कृति और साहित्य के वैश्विक प्रसार का माध्यम बनेगी बल्कि वैश्विक राजनीति और कूटनीति में भी हिंदी की स्थिति मज़बूत करेगी। हिंदी दिवस केवल स्मरण का नहीं, संकल्प का क्षण है। अपनी भाषा को गौरव के साथ वर्तमान और भविष्य दोनों में जीवंत बनाए रखने का संकल्प लेने का क्षण। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा भविष्य में मिल ही जाएगा। इसका संकेत यह है कि 2020 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने ट्विटर पर हिंदी में अपना अकाउंट बना लिया है और फेसबुक पर भी हिंदी पेज बनाया है।

कहते हैं जो देता है, वह देवता है। देवता ब्रह्मांड संतुलन का कार्य करते हैं। हिंदी पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखकर सभी भाषा-भाषियों में संतुलन का कार्य करती है। हिंदी भी देव स्वरूप है। हिंदी ने देश-समाज को हमेशा कुछ न कुछ देने का काम किया है। हिंदी से प्रेम करके आप समृद्ध हो सकते हैं। हिंदी को गाली देकर आप चर्चा में भी रह सकते हैं। हिंदी सबकी है। जो माने उसका भी भला करती है, न माने उसका भी। हिंदी लोगों के हृदय पर अंकित राजमुद्रा है। हिंदी भारत के लोगों की जिह्वा पर निवास करती है। हिंदी रसपूर्ण है। हिंदी आनंददायिनी है। वह वास्तव में रस (आनंद) है। केवल रस को प्राप्त करने से ही आनंद की अनुभूति होती है।
‘रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति’।
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं!
● 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। इस दिन, संविधान के निर्माताओं ने अनुच्छेद 343 के अंतर्गत यह तय किया कि देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा होगी।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छा लेख । हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।