■ अभय मिश्र

किसी का फायदा किसी का नुकसान होता है। छगन भुजबल को नुकसान समझ में आ गया है। भुजबल लंबे ओबीसी राजनीति के बड़े चेहरों में गिने जाते हैं। नागपुर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का गृहक्षेत्र है। भुजबल का वहां शक्ति प्रदर्शन करने का फैसला अपने आप में राजनीतिक संदेश दे रहा है। यह न केवल सरकार के लिए चुनौती है बल्कि भाजपा की ओबीसी वोट-बैंक पकड़ पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।
मराठा समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग करता रहा है। सरकार ने हाल ही में कुनबी प्रमाणपत्र देकर उन्हें ओबीसी श्रेणी में समाविष्ट करने का रास्ता खोला है। अब ओबीसी संगठनों का आरोप है कि इससे उनके आरक्षण हिस्से में कटौती होगी। इसी को लेकर नाराज़गी बढ़ रही है और भुजबल इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीति संभावनाओं का खेल है। भुजबल के इस कदम से कुछ संभावनाएं प्रकट हो रही हैं। कुछ पर नजर डालते हैं। भाजपा का बड़ा वोटबैंक ओबीसी समाज रहा है। अगर भुजबल का आंदोलन व्यापक समर्थन पाता है तो भाजपा की चुनावी रणनीति पर सीधा असर पड़ेगा।कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) इस असंतोष को भुनाने की कोशिश कर सकते हैं। वे खुद को ‘ओबीसी हितैषी’ के रूप में पेश करने का प्रयास करेंगे। सरकार को अब मराठा समाज और ओबीसी समाज दोनों को संतुलित करना होगा। किसी एक को खुश करने पर दूसरे वर्ग की नाराज़गी बढ़ सकती है।
जानकारों का मानना है कि अगर यह आंदोलन लंबा खिंचता है तो यह 2024–25 के चुनावी परिदृश्य को बदल सकता है। ओबीसी और मराठा आरक्षण का टकराव महाराष्ट्र की राजनीति में सत्ता समीकरण और गठबंधन की दिशा तय करने वाला मुद्दा बन सकता है।
वैसे इसे संयोग ही समझा जाएगा कि भुजबल द्वारा नागपुर में अपना बाहुबल दिखाने को आतुर होते ही विशेष सत्र न्यायालय की ओर से बुलावा आ गया है। बेनामी संपत्ति के मामले में उनके और उनके परिजनों के खिलाफ 6 अक्टूबर से सुनवाई शुरू हो रही है।
राजनीति शतरंज की बिसात है। यहां घोड़े ढाई कदम, ऊंट तिरछे, वजीर हर दिशा में और सिपाही एक-एक कदम चलता है। राजा अपनी सेना को आक्रमण मोड में उलझाए रखता है। राजा किसी भी दिशा से चेकमेट हो सकता है। हमला और रक्षातंत्र भी राजतंत्र का हिस्सा है।
ओवर टू नागपुर!
राजनीतिक विश्लेषण के अलावा यह बहुत बढ़िया संपादकीय लेख है। बहुत बढ़िया।