● सूर्यकांत उपाध्याय

एक छोटे कस्बे में समीर नाम का लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। बचपन में ही पिता का देहांत हो गया, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई। माँ थोड़ी पढ़ी-लिखी थीं पर इतनी पढ़ाई से नौकरी मिलना संभव नहीं था। उन्होंने घर-घर बर्तन मांजने और सिलाई-बुनाई कर समीर की पढ़ाई का खर्च उठाया।
समीर स्वभाव से शर्मीला और चुपचाप रहने वाला था। एक दिन स्कूल से लौटते समय वह माँ को मास्टर साहब का लिफाफा देकर बोला, “माँ, देखो इसमें क्या लिखा है।”
माँ ने चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुराकर बोलीं, “बेटा, इसमें लिखा है कि तुम बहुत होशियार हो। इस स्कूल में तुम्हें पढ़ाने योग्य शिक्षक नहीं हैं, इसलिए तुम्हें किसी बड़े स्कूल में भेजना चाहिए।” यह सुनकर समीर को गर्व हुआ और उसका आत्मविश्वास बढ़ गया। माँ ने किसी तरह उसका दाखिला दूसरे स्कूल में करा दिया।
समय बीता। समीर ने कठिन परिश्रम से पढ़ाई की और अंततः सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर IAS अधिकारी बन गया। माँ अब वृद्ध और बीमार हो चुकी थीं। कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया। समीर पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा।
माँ की अलमारी खोलते हुए उसे उनके चश्मे, माला और सावधानी से रखे गए पुराने खिलौने व कपड़े मिले। तभी उसकी नज़र एक पुरानी चिट्ठी पर पड़ी, वही चिट्ठी जो उसे बचपन में मिली थी।
नम आँखों से उसने पढ़ा, “आदरणीय अभिभावक, खेद है कि आपका बेटा समीर पढ़ाई में अत्यंत कमजोर है और खेल-कूद में भी भाग नहीं लेता। उसकी बुद्धि उम्र के अनुसार विकसित नहीं हुई है। कृपया इसे किसी मंदबुद्धि विद्यालय में भेजें या घर पर पढ़ाएँ।”
समीर फूट-फूटकर रो पड़ा। उसे समझ आ गया कि उसकी माँ ने वास्तविकता छुपाकर उसे आत्मविश्वास दिया और अपने संघर्ष से उसका जीवन संवार दिया। सचमुच, माँ की ममता ही सबसे बड़ी शक्ति होती है।
