● सूर्यकांत उपाध्याय

एक समय की बात है। एक साधु अपने शिष्यों को जीवन का महत्व समझा रहे थे। उन्होंने सभी शिष्यों से कहा, “आज मैं तुम्हें एक छोटा-सा प्रयोग दिखाऊँगा।”
वे सबको लेकर एक अंधेरी गुफा में गए। गुफा इतनी गहरी थी कि चारों तरफ केवल घोर अंधकार था। शिष्य भयभीत हो उठे। किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
साधु ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली से एक छोटा-सा दीपक निकाला और जलाया। क्षणभर में अंधकार छंट गया और गुफा के भीतर का रास्ता साफ नज़र आने लगा।
साधु ने कहा, “देखा! एक छोटा-सा दीपक भी कितना बड़ा परिवर्तन ला देता है। जिस अंधकार से तुम सब डर रहे थे, वही दीपक के प्रकाश से तुरंत दूर हो गया।”
फिर उन्होंने समझाया, “बेटा! जीवन भी ठीक ऐसा ही है। कठिनाइयाँ और निराशा अंधकार की तरह हमें घेर लेती हैं। हम डर जाते हैं और सोचते हैं कि अब कोई रास्ता नहीं। लेकिन यदि हम अपने भीतर की ‘आशा’ का दीप जलाएँ तो वही छोटी-सी रोशनी हमें सही राह दिखा देती है।”
शिष्य गहराई से प्रभावित हुए। उन्होंने समझा कि दुनिया बदलने के लिए बड़ी शक्ति की नहीं बल्कि छोटे-छोटे प्रयासों की आवश्यकता होती है। जैसे दीपक अकेले पूरे अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही एक इंसान का सकारात्मक दृष्टिकोण समाज को नई दिशा दे सकता है।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि कठिन समय में हार मानने के बजाय, हमें अपने भीतर आशा और विश्वास का दीपक जलाना चाहिए। वही रोशनी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
