लेह-लद्दाख चर्चा में

लेह/नई दिल्ली
भारत ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। केंद्र शासित प्रदेश लेह-लद्दाख को देश का पहला ‘कार्बन-न्यूट्रल क्षेत्र’ घोषित किया गया है। यह कदम जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरा है।
सरकार और स्थानीय समुदाय के समन्वित प्रयासों के चलते यह मुकाम हासिल हुआ। यहां अब ऊर्जा का अधिकांश भाग सौर, पवन और जल स्रोतों से प्राप्त हो रहा है। क्षेत्र के 90% से अधिक घर और सार्वजनिक प्रतिष्ठान अब ग्रीन एनर्जी से संचालित हो रहे हैं।लेह और आसपास के इलाकों में डीजल वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाया गया है। अब यहां सड़कों पर दौड़ती हैं इलेक्ट्रिक टैक्सियां, ई-बाइक और सोलर बसें। इसके लिए 100 से अधिक चार्जिंग स्टेशन भी स्थापित किए गए हैं।
‘वन लद्दाख मिशन’ के तहत 10 लाख से अधिक पौधे रोपे गए हैं। ऊंचाई और जलवायु के अनुसार स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी गई है। साथ ही, ‘आइस स्तूप’ तकनीक से ग्लेशियरों के पिघलने के पानी को सहेज कर जल संकट से भी राहत मिली है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
- 95% बिजली अब नवीकरणीय स्रोतों से
- 60% वाहन इलेक्ट्रिक
- प्रति वर्ष 1.8 लाख टन CO₂ की कटौती
- 150 गांवों में सौर स्ट्रीट लाइट और स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट
प्रधानमंत्री ने सराहा, वैश्विक संस्थाओं ने दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, लद्दाख वासियों ने दिखाया कि पर्यावरण और विकास साथ चल सकते हैं। यह नया भारत है – हरित भारत!’ वहीं, UNEP और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क ने भी लद्दाख मॉडल को ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिस बताया है।
क्या है ‘कार्बन-न्यूट्रल’ क्षेत्र?
जब कोई क्षेत्र जितनी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है, उतनी ही मात्रा को जंगल, तकनीक या अन्य उपायों से अवशोषित कर लेता है, तब उसे ‘नेट जीरो’ या ‘कार्बन-न्यूट्रल’ कहा जाता है।