
जोशीमठ (उत्तराखंड)।
चमोली जिले के नीति गांव में स्थित द्रोणागिरी पर्वत को लेकर एक अनोखी आस्था और परंपरा आज भी जीवित है। बद्रीनाथ से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित इस पर्वत का जुड़ाव रामायण काल से माना जाता है। मान्यता है कि लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में यहां आए थे लेकिन बूटी की पहचान न होने पर उन्होंने पर्वत का एक हिस्सा ही उखाड़कर लंका ले गए। इसी वजह से गांववाले आज भी हनुमानजी की पूजा नहीं करते।
पर्वत का ऊपरी हिस्सा दिखता है कटा हुआ
स्थानीय लोगों के अनुसार आज भी द्रोणागिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ दिखाई देता है, जो इस पौराणिक कथा की पुष्टि करता है। इस पर्वत की ऊंचाई 7,066 मीटर है और यह ट्रैकिंग प्रेमियों के बीच भी खासा लोकप्रिय है।शीतकाल में भारी बर्फबारी के चलते नीति गांव खाली हो जाता है और लोग निचले इलाकों में चले जाते हैं। गर्मी के मौसम में अनुकूल वातावरण होने पर ग्रामीण वापस लौटते हैं।
जून में होती है पर्वत पूजा
हर साल जून में द्रोणागिरी पर्वत की विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दौरान सिर्फ गांववाले ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी प्रवासी ग्रामीण शामिल होते हैं।
जोशीमठ से मलारी की ओर करीब 50 किमी आगे ‘जुम्मा’ नामक स्थान से द्रोणागिरी गांव के लिए कठिन ट्रैकिंग मार्ग शुरू होता है, जहां लगभग 10 किमी की पैदल यात्रा में दुर्गम पगडंडियों को पार करना होता है। प्रकृति प्रेमियों और साहसिक यात्रियों के लिए यह क्षेत्र खासा आकर्षण रखता है।